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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

दीया जलाओ जग जग पग पग

साथियों, आज मैं एक ऐसा ज्वलंत और संदेशपूर्ण गीत पेश कर रहा हूँ, जो 'कोरोना' संकट के अँधेरे को दूर कर उजाले की अहमियत का अहसास कराता है।
मित्रों, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी देशवासियों से अपील की है कि, आवश्यक दूरी का पालन करते हुए अपने घरों में रविवार पांच अप्रैल को रात नौ बजे, नौ मिनट तक सारी लाइट बंद कर एक-एक दीया, मोमबत्ती, टार्च या मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाएं, ताकि ज्ञात हो सके कि, प्रकाश की महाशक्ति से कोरोना संकट के अंधकार को समाप्त करने की दिशा में हम सब एक हैं।
बहरहाल, यह मौजूँ गीत वर्ष 1943 में प्रदर्शित प्रसिद्ध फ़िल्म 'तानसेन' के सदाबहार गीत 'दीया जलाओ जगमग जगमग ..' की तर्ज़ पर आधारित है, जिसके गीतकार थे पंडित इंद्र। उसे कुंदन लाल सैगल ने गाया था और खेमचंद प्रकाश ने संगीतबद्ध किया था।
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दीया जलाओ जग जग पग पग
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तन सूना साँस बिना
और मन बिन चैन
मँदिर सूना मूरत बिना
भक्ति बिन भगवान

दीया जलाओ
जग जग पग पग, दीया जलाओ
जग जग पग पग, दीया जलाओ
दीया जलाओ
दीया जलाओ
दीया जलाओ
दीया जलाओ
जग जग पग पग, दीया जलाओ
जग जग पग पग, दीया जलाओ

सरस दरसन दो हरि
सरस दरसन दो हरि
सरस दरसन दो हरि

सरस दरसन दो हरि
मेरे अँदर में देख अँधेरा
मेरे अँदर में देख अँधेरा
रूठ न जाये जिया मेरा
रूठ न जाये जिया मेरा

दीया जलाओ
दीया जलाओ
दीया जलाओ

दीया सजाओ
दीया जलाओ
दीया सजाओ
दीया जलाओ
जग जग पग पग
जग जग पग पग
जग जग पग पग
जग जग पग पग
जग जग पग पग दीया जलाओ
जग जग पग पग दीया जलाओ

@दिनेश ठक्कर बापा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़

(चित्र : गूगल से साभार)

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

ये सब लौट चले

ये सब लौट चले
ये सब लौट चले
गठरी उठाये, ये बे सहारे
इनको पुकारे, गाँव खेड़ा
ये सब लौट चले
ये सब लौट चले
गठरी उठाये, ये बे सहारे
इनको पुकारे, गाँव खेड़ा
आ जा रे, आ जा रे, आ जा
कठिन है डगर पे, भूखे चलना
देख के आता, जिनगी को रोना
कोई ये जाने, या ना जाने
नहीं है आसाँ, साँस सँभलना
ये सब लौट चले
ये सब लौट चले
गठरी उठाये, ये बे सहारे
इनको पुकारे, गाँव खेड़ा
आ जा रे, आ जा रे, आ जा
जान इनकी, दाँव पर है
आँख में आँसू का, सागर है
रोटी छुड़ाये, शहर पराये
इनका गाँव फिर, इनका घर है
ये सब लौट चले
ये सब लौट चले
गठरी उठाये, ये बे सहारे
इनको पुकारे, गाँव खेड़ा
ये सब लौट चले
ये सब लौट चले
आ जा रे…
ये सब लौट चले
आ जा रे …
@दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र : सोशल मीडिया से साभार)

मंगलवार, 31 मार्च 2020

देख के आता है ज़िंदगी को रोना


ये सब लौट चले
गठरी उठाये ये बेसहारे
इनको पुकारे गलियाँ चौबारा
ये सब लौट चले ....

कठिन है लम्बी राह भूखे चलना
देख के आता है ज़िंदगी को रोना
कोई ये भी जाने न जाने
नहीं है आसाँ साँसों का सँभलना
ये सब लौट चले ....

जान इनकी दाँव पर है
आँखों में आँसुओं का
रोता समँदर है
रोजी रोटी छुड़ाये शहर पराये
हाथ फैलाये इन्हें गाँव जाना है
इनका गाँव फिर इनका गाँव है
ये सब लौट चले ....

@दिनेश ठक्कर बापा
(फोटो : सोशल मीडिया से साभार)

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018


छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ द्वारा पांच अक्टूबर को बिलासपुर स्थित आईएमए सभागार में प्रादेशिक पत्रकार सम्मलेन और पत्रकार अलंकरण समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुझे भी सम्मानित होने तथा अपनी कविता "मुट्ठी भर छाँव " के पाठ का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
वीडियो साभार : मित्र राजेश दुआ

शुक्रवार, 29 जून 2018

रामनामियों की रामनवमी

रामनामियों की रामनवमी
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17 अप्रैल, 1994 को जनसत्ता, दिल्ली के रविवारी अंक में "रामनामियों की रामनवमी" शीर्षक से मेरा आलेख प्रकाशित हुआ था. इसकी कतरन आज भी मेरे संग्रह में सुरक्षित रखी हुई है, जो कि मेरे लिए धरोहर स्वरूप है. सुधि पाठकों और अनुसंधानकर्त्ताओं के लिए यह सादर प्रस्तुत है. . 



मंगलवार, 2 मई 2017

उतार चढ़ाव

लाल बत्ती को उन्होंने
सिर से उतार ही दिया
मुखौटा उतारा उन्होंने
सूट बूट भी उतार दिया
शाही शानशौकतजादे
नौकरशाह साहबजादे
सबने ये दिखावा किया

उन्हें जिसने चढ़ा लिया  
वह भ्रष्टाचार था  
उन्हें जिसने अपनाया  
वह मालदार रिश्वत थी  
उन्हें जिसने चिपकाया  
वह रौबदार कुर्सी थी !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

सोमवार, 1 मई 2017

गिद्ध ग्रास

निरंतर शोषण से मर्माहत होकर
अंतिम सांसें गिनने लगा है श्रम
दुखी होकर शोषित पसीना  
सिसकने लगा छिली त्वचा पर
दिन प्रतिदिन  
सभी सीमाएं लांघने लगा शोषण
और होने लगा गिद्धों का जमावड़ा

उखड़ती सांसों को समेटते हुए श्रम
हो रहा है अश्रुपूरित
होता जा रहा है समाप्त
शोषित पसीने से नमक
खून तो पहले ही चूसा जा चुका है
प्रतीक्षा कर कर रहा गिद्धों का झुंड  
कि शव में कब परिवर्तित हो श्रम
ताकि बनाया जा सके अपना ग्रास  
और नोंच खाएं उसका अंग प्रत्यंग

एक दिन
उधार की सांसें भी गंवा देता है श्रम
टूट पड़ते हैं गिद्ध उसकी लाश पर
और उसे अपना ग्रास बना कर
एकजुट होकर नोंच खाने के बाद  
उड़ जाते हैं नए शव की तलाश में !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)