चाँद की थाली में
रूखी रोटी, नून चावल
आसमान की कटोरी में
फीकी पतली दाल
सुहाती नहीं यह बात
कब बदलेंगे सूरते हाल
भूखे बेचारे तारे सितारे
सूरज के कंठ हैं प्यासे
मुफलिसी की यह इंतहा
हैरान है सारा जहां
देखते नहीं बनते नज़ारे
मुश्किलें हैं पैर पसारे
चाँद की थाली में ........
जमीन की हथेली में
चंद दाने अनाज के
इंसान नहीं रहे काज के
गरीबों के पेट पिचके
अमीरों के चहेरे दमके
तारीखें लगी दिन गिनने
चाँद की थाली में .........
रेगिस्तान की गर्म रेत
बेवक्त के आंसुओं से
जम गई है बर्फ सी
स्याह हो रहे हैं
पीढ़ियों के निशान
सदियाँ हैं परेशान
चाँद की थाली में ........
दरिया के दामन में
भर गया शर्म का पानी
मछलियों के बेमौत मरने की
दर्द भरी है यह ज़ुबानी
बगैर तूफान कश्तियों के
डूबने की है यह कहानी
चाँद की थाली में .....
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
रूखी रोटी, नून चावल
आसमान की कटोरी में
फीकी पतली दाल
सुहाती नहीं यह बात
कब बदलेंगे सूरते हाल
भूखे बेचारे तारे सितारे
सूरज के कंठ हैं प्यासे
मुफलिसी की यह इंतहा
हैरान है सारा जहां
देखते नहीं बनते नज़ारे
मुश्किलें हैं पैर पसारे
चाँद की थाली में ........
जमीन की हथेली में
चंद दाने अनाज के
इंसान नहीं रहे काज के
गरीबों के पेट पिचके
अमीरों के चहेरे दमके
तारीखें लगी दिन गिनने
चाँद की थाली में .........
रेगिस्तान की गर्म रेत
बेवक्त के आंसुओं से
जम गई है बर्फ सी
स्याह हो रहे हैं
पीढ़ियों के निशान
सदियाँ हैं परेशान
चाँद की थाली में ........
दरिया के दामन में
भर गया शर्म का पानी
मछलियों के बेमौत मरने की
दर्द भरी है यह ज़ुबानी
बगैर तूफान कश्तियों के
डूबने की है यह कहानी
चाँद की थाली में .....
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)