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सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

दाने दाने के लिये तरसे अन्नदाता


श्रमवीर कृषकों की आशाओं पर
आश्वासनों का हल चला कर तुमने
भूख शांत करने वाले खेत को नहीं
जोत दिया है उनका कर्जदार सीना
उनके अश्रुओं से की है मिट्टी नम
उनके रक्त से सींचा अभिलाषाओं को
दैहिक खाद डाल बोये हैं स्वार्थी बीज  
फिर फसल चुपके से काट ली तुमने
जीवनदायी खेत बना दिये श्मशान
अपने नहीं रहे उनके खेत खलिहान
भेंट चढ़ा दिये गये धन पिशाचों को
अब यहां धुआं उगलती है चिमनियां
पर्यावरण संग सांसें कर दी प्रदूषित

दाने दाने के लिये तरस रहे अन्नदाता
पेट में लात मार कर भड़काई है आग
सियासी चूल्हे में चढ़ाई वादों की हांडी
कड़छूल हिला कर कर रहे हो भ्रमित
कब तक बैठाओगे भूखों की पंगत में
कब तक पकाओगे भाषण पिला कर
अथवा कुछ खिचड़ी परसोगे थाली में
या सिर्फ भड़काते रहोगे पेट की आग
लेकिन यह भलीभांति समझ लो तुम
किसी दिन भूखे पेट की इसी आग में
जल कर राख होगा अस्तित्व तुम्हारा !

@ दिनेश ठक्कर बापा  
(चित्र गूगल से साभार)  
 
       
     


 
     


शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

गधा गाथा

कब तक गधे
अपना शोषण कराते रहेंगे
कब तक वे
दूसरों का बोझ उठाते रहेंगे
कब तक गधे
भूखे प्यासे रहते हुए भी
ताने और प्रहार सहते रहेंगे
कब तक यह सवाल
यक्ष प्रश्न बना रहेगा
लेकिन गधों के मालिक
यह अच्छी तरह जानते हैं
कि
जब तक गधे निर्भय होकर
स्वयं प्रतिकार नहीं करेंगे
जब तक सोया रहेगा जमीर
तब तक वे आलापते रहेंगे
गधों की वफादारी का राग
और
पीढ़ियों तक बेबस गधों पर
शोषण का बोझ लादते रहेंगे
जिम्मेदारी से कार्य करने का
जुमला यदाकदा फेंकते रहेंगे
अपना प्रेरणा स्त्रोत भी बताएंगे
उन्हें घोड़ों के समकक्ष दर्शा कर
महानायक से प्रचारित करवाएंगे
अंततः
स्वार्थ पूरा होने पर दुलत्ती मारेंगे
खलनायक बन कर उलाहना देंगे
रेंकते रहेंगे कि
गधा, गधा ही रहेगा !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)



 

   

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

कई चेहरे कई मुखौटे

कुर्सी पर काबिज होने तक बदल जाते हैं कई चेहरे
खुदगर्जी खातिर पहने जाते हैं अक्सर कई मुखौटे

सियासी मंच पर दिखते हैं उनके नकली किरदार
पर्दा गिरते ही सामने आ जाते है असली किरदार

जुमले उछालने में मुकाबला कोई कर सकता नहीं  
ख़िलाफत होने पर जुबां बंद करवाने से चुकते नहीं

नौटंकी उनकी देखने यहाँ गूंगे बहरे जुटते हैं ज्यादा
ऊपर वाला ही जाने उन्हें कितना हुआ होगा फायदा

वक्त अब आ गया है मिल कर उतारें उनके मुखौटे
जुम्हूरियत की सूरत संवारने दिखाएं असली चेहरे

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)