अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

भविष्य जड़वत है जमीं पर

हैदराबाद के हुसैन सागर के निकट सड़क किनारे बैठे  वार्निश से पुते बच्चे को भीख माँगते देख कर ह्रदय उद्वेलित हो गया| आँखें नम हो गई| कुछ देर बाद इस बच्चे का पिता, जो शराब के नशे में धुत्त था, आया और सिक्के बटोर कर चला गया| सवाल करने पर यह बच्चा मौन साध कर मूर्तिवत बैठा रहा| इस नजारे को देख कर कुछ पंक्तियाँ लिपिबद्ध हो गई .....
भविष्य जड़वत है जमीं पर
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कितना बेबस है बचपन
बदन है चांदी जैसा
फिर भी है कंगाल
किया गया है विवश
हाथ फैलाने के लिए
बैठाया गया है मूर्तिवत
भीख मागने के लिए
हाथ में होनी थी किताबें
थामे है भीख का कटोरा
बैठना था पाठशाला में
बैठाया गया फुटपाथ पर
तारे बैठे है बेबस जमीं पर
भविष्य जड़वत है जमीं पर
पिता नशे में उड़ते आसमां पर !
@ दिनेश ठक्कर बापा

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

अगर मिटाना ही है तो .....
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धर्म, जात-पांत के नाम पर
दंगे, खून खराबा कराना
देश के लिए ठीक नहीं
अपने सिंहासन की खातिर
लोगों को आपस में लड़ाना
लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

हिंदू अथवा मुस्लिम
सिख अथवा ईसाई
दलित अथवा सवर्ण
गरीब अथवा अमीर
सबका रक्त एक जैसा
इनमें भेदभाव ठीक नहीं
स्वार्थ की जमीन पर
विद्वेषी दीवार ठीक नहीं

मिट्टी में दफ़न
रक्तरंजित अतीत कुरेदना
विवादों के गड़े मुर्दे उखाड़ना
वर्तमान के लिए ठीक नहीं
अतीत के अपराध की सजा
भविष्य को देना ठीक नहीं

हर किसी का सूरज
किसी साँझ ढल जाएगा
दूसरे के हिस्से की घूप
हड़पना कतई ठीक नहीं
अपनी लकीर बढ़ाने हेतु
दूसरों की लकीर मिटाना
कतई ठीक नहीं
अगर मिटाना ही है
तो भूख गरीबी मिटाएं
साथियों
साम्प्रदायिक सद्भाव मिटाना
इंसानियत के लिए ठीक नहीं !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

विकलांगता

हैदराबाद स्थित बिरला निर्मित वेंकटेश्वर मंदिर के निकट इस साधु वेश विकलांग भिखारी पर जब मेरी नजर पड़ी, तो उसके पीछे खड़ी महिला की गतिविधियो की तरफ भी ध्यान गया| वह श्रद्धालुओं से   मिले सिक्के और नोट बटोर कर पास में चिलम पीते बैठे व्यक्ति को सौंप रही थी| विकलांग भिखारी से वस्तुस्थिति पूछने पर उसने बताया कि चीलम पीते व्यक्ति और इस महिला ने उसे दैनिक वेतन पर अनुबंधित किया हुआ है| दो वक्त की रोटी भी देते है| इस इलाके में अधिकतर भिखारी भाड़े पर बैठाये गए हैं| कुछ ढोंगी अपाहिज भिखारी भी है| कुछ अनाथ बच्चों से भी भीख मंगवाई जाती है| हर गिरोह का इलाका बंटा हुआ है|
यह हालात जानने के बाद चंद पंक्तियाँ लिपिबद्ध हो गई|
विकलांगता
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विकलांगता
शरीर में नहीं
सोच में होती है
शोषण
करते है हर हालात में
नहीं इसकी कोई सीमा
शोषक
भुनाते हैं हर स्थिति को
नहीं इनका कोई धर्म ईमान
नहीं कोई नाता मानवता से
रौंदते है बेबस बचपन को
खून चूसते हैं विवशता का
धन पशु बन कर ये जीते हैं
शोषक लोभवश स्वयं को
ज़िंदा रह कर मुर्दा बना लेते
कब्र पर भी दूकान सजाते है
अंततः
बेमौत मिट्टी में मिल जाते है !
@ दिनेश ठक्कर बापा

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

कटु सत्य
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रावण का अहंकार
और
असत्य
दम तोड़ देता है
उसके मरने के साथ

अहंकार और असत्य
पैदा होने के साथ
व्यक्ति
रावण बन जाता है
और
उसका पतन
निश्चित हो जाता है
जीवित रह कर भी वह
मुर्दा हो जाता है !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

हैदराबाद की प्रदूषित हुसैन सागर झील

चार मीनार की तरह हुसैन सागर झील भी हैदराबाद (तेलंगाना) की पहचान को रेखांकित करती है| यह कृत्रिम झील है, जो वर्ष 1562 में में मूसी नदी की सहायक नदी पर निर्मित की गई थी| इस झील की अधिकतम लंबाई करीब 3.2 कि.मी. और चौड़ाई करीब 2.8.कि.मी. है| इसकी अधिकतम गहराई 32 फुट है| यह झील हैदराबाद और इसके जुड़वा शहर सिकंदराबाद को विभाजित करती है| इस झील की शोभा बढ़ाने के लिए  वर्ष 1992 में मध्य भाग स्थित टापू पर गौतम बुद्ध की ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई थी| इस झील के चारों ओर पर्यटन और धार्मिक स्थल भी हैं, जो इसके आकर्षण में वृद्धि करते हैं| मसलन,जल विहार, लुम्बिनी गार्डन, एनटीआर गार्डन, स्नो वर्ल्ड, नेकलेस रोड, बिरला निर्मित संग्रहालय,मंदिर आदि| लेकिन दुःख का विषय यह है कि झील पिछले तीन दशक से निरंतर प्रदूषित हो रही है| इसका पानी बेहद प्रदूषित हो गया है| आसपास के आवासीय और औद्योगिक क्षेत्र का प्रदूषित जल इस झील में प्रवाहित किया जा रहा है| शासन प्रशासन द्वारा प्रदूषण पर अंकुश लगाने अब तक कोई ठोस उपाय नहीं किये गये हैं| और न ही सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल की जा रही है| गौरतलब है कि हैदराबाद और सिकंदराबाद के लोगों द्वारा इस झील में ही हर वर्ष हजारों की संख्या में छोटी बड़ी गणेश और दुर्गा प्रतिमाएं भी विसर्जित की जाती है| इस दौरान पूरा  महानगर उमड़ पड़ता है| इससे चारों और गन्दगी पसर जाती है| मोदी जी का स्वच्छ भारत अभियान यहां नजर नहीं आता| साफ़ सफाई राम भरोसे है|
@ दिनेश ठक्कर बापा

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

रामोजी फिल्म सिटी में एक दिन

हैदराबाद से 25 किलोमीटर दूर नल्गोंडा मार्ग पर स्थित रामोजी फिल्म सिटी का अवलोकन यादगार रहा| दक्षिण भारत के विख्यात फिल्म निर्माता और मीडिया ग्रुप संचालक रामोजी राव ने वर्ष 1996 में इसकी स्थापना की थी| दो हजार एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तृत इस आउटडोर इनडोर फिल्म सिटी में पचास शूटिंग फ्लोर हैं| यहां एक साथ पच्चीस फिल्मों की शूटिंग संभव है| प्री प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक सभी आधुनिक उपकरण,साधन सुविधाएँ उपलब्ध हैं| यहां पांच सौ से अधिक सेट लोकेशन हैं| एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, सेन्ट्रल जेल, गाँव शहर के लोकेशन वाले विविध स्थाई सेट,चीन, यूरोप और देश के प्रमुख शहरों के बगीचों की अनुभूति कराने वाले गार्डन आदि मनमोहक हैं| रामोजी ग्रुप की इकाई उषा किरण मूवीज़ लिमिटेड ने हॉलीवुड की तर्ज पर इस फ़िल्म सिटी को साकार किया है| गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज यह विश्व का सबसे बड़ा फ़िल्म स्टुडियो कॉम्पलेक्स माना जाता है| पर्यटन स्थल बतौर भी विकसित होने के कारण यहां हर वर्ष दस लाख से भी अधिक लोग आते हैं| गाइड के नेतृत्व में रेड विंटेज बस से फ़िल्म सिटी का भ्रमण आनंददायक और ज्ञानवर्धक होता है| एक्शन थियेटर, फ़िल्मी दुनिया, बोरासुरा मैजिशियन वर्कशॉप, बर्ड पार्क, यूरेका, स्प्रीट ऑफ रामोजी,फोर्ट फ्रंटियर स्टंट शो, लाइट कैमरा एक्शन, दादाजी लाइव टीवी शो, नृत्य प्रस्तुति सहित विविध राइड पर्यटकों को लुभाते हैं| लेकिन फिल्मों की शूटिंग के दरम्यान सेट पर पर्यटकों के जाने पर सख्त मनाही है| उसके बावजूद हर पर्यटक भ्रमण के बाद सुखद अनुभूति के साथ लौटता है|
_ दिनेश ठक्कर बापा