दो वक्त की रोटी की चाहत में
बस्ती के मुहाने पर
सड़क के किनारे तंबू लगा कर
भूखे इंसानों का परिवार
पत्थरों को तराश कर
ईमानदारी से गढ़ रहा है
प्रतिमाओं का प्रकार
उनकी छेनी हथौड़ी का प्रहार
आस्था को दे रहा है आकार
बेबस अशक्त और निर्धन हाथ
बेजान पत्थरों में प्राण फूंक कर
रच रहे शक्ति और धन की प्रतिमााएं
अन्न संकट से जूझ रही काया
तराश रही संकट मोचन की काया
जमाने की दुत्कार झेलता हुनर
पत्थरों को दे रहा पूज्य आकार
हो गई हैं तैयार मूर्तियाँ
सज गई हैं वे सड़क के किनारे
रोजी रोटी मिलेगी इनके सहारे
जिनकी होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा
उधर, तंबू के पीछे आश्रम में
उच्च तकनीक से हुए हैं तैयार
अत्याधुनिक
स्वार्थी बाबा
सभा में कृपा की कर रहे बौछार
कचौड़ी पकौड़ी चटनी खिला कर
दिव्य शक्ति का सपना दिखा कर
जेब पर डाल रहे हैं डाका
लूटखसोट का छोड़ते नहीं हैं मौका
तंबू के सामने जब गुजरा
स्वार्थी बाबाओं का काफिला
तब भूखे इंसानों का परिवार
दुबक गया एक किनारे
पाखंडियों का प्रपंच देख कर
दुखी हो गया शिल्पकार परिवार
मासूम बेटी ने पिता से पूछा -
इनको किसने बनाया?
पिता ने रूंधे स्वर में जवाब दिया -
इन्हें अंधभक्तों ने बनाया है
इनका ह्रदय पत्थर का है !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र : गूगल से साभार)