अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

नहीं पिघलती है बर्फ कच्ची छतों में

















रात भर बर्फ अपनी ठंडी हथेलियों से
दरवाजे खिड़कियां खटखटाती है
भीतर घुसने का प्रयास व्यर्थ होने से
नींद के मारे पक्की छतों पर सो जाती है

बादलों की ओट में सूरज छिप जाने से
बर्फ दिन में भी सर्द खर्राटे मारती है
मखमली छतों की शोभा बढ़ाती है
धनी छतों को स्वर्ग सा आनंद देती है  

यदा कदा बर्फ रात को घुप्प अँधेरे में
निर्धन छतों में दबे पाँव पहुँच जाती है  
जीवन रोशनी बुझाने में खुश होती है
नहीं पिघलती है बर्फ कच्ची छतों में

पहाड़ पर बर्फ सफेद कहर बरपाती है  
निर्बल छतें ही खून से लथपथ होती हैं  
जमीन से लिपट कर दम तोड़ देती है  
बर्फ की चादर ही कफन बन जाती है      
 
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(तस्वीर मेरे द्वारा)  


सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पश्मीना ओढ़ा बूढ़ा पेड़

जवां चीड़ देवदारों के बीच
जीवन के अंतिम छोर पर
झुका पश्मीना ओढ़ा बूढ़ा पेड़
भारी बर्फबारी से शंकित है
आ न जाय गिरने की बारी
अनुभवी आँखों में नमी सी है
पड़ोसी पेड़ों से विनती करता है
मुझे अपनी जड़ों से जोड़े रखो
ठंडी होती देह को गरमाए रखो
आशाओं का अलाव जला दो
बुझते संबंधों को सुलगा दो
मेरी शाखों को ईंधन बना लो
तुम सूखे स्वार्थी पत्ते जला दो
सफेद आफत को राख कर दो
हम ऐसी ऊर्जा पैदा करें ताकि  
देह प्रेम अग्नि से गर्म हो जाय  
बर्फ भी पसीने पसीने हो जाय      

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
 (तस्वीर मेरे द्वारा)





रविवार, 21 दिसंबर 2014

बर्फ की चादर


पहाड़ों पर जब सोने सर्दी आई
बर्फ ने अपनी चादर बिछाई
गर्मी ने जाने में समझी भलाई  
कांपते हुए कहा सो जाओ माई 

मौसम के करवट बदलते ही   
पहाड़ों पर सर्दी सो गई   
बर्फ की चादर पर,  
कंपकंपाती हुई ठंडक 
लिपट गई  
समूची देह पर, 
शीत आलिंगन देख कर 
ऊंचा पारा हुआ शर्मीला, 
प्रवाहित रक्त भी जम कर   
हो गया है अब बर्फीला,   
उभर गए हैं त्वचा पर 
सफेद आफत के धब्बे, 
हाथ पांव सिकुड़ कर 
बने थरथराती गठरी,
सांसें भी मांग रही हैं 
अपने लिए प्राण वायु, 
जो आंख कान खोलें 
तो चुभने लगते है
सफेद हवाओं के झोंके,
ठिठुरती परिस्थितियों से      
जीवन ठहर सा गया है 

चीड़ देवदार भी कहने लगे हैं
सर्द सफेद छांव से उबार दो 
मुझे जर्द धूप का पसीना दे दो  
सूरज अपना अलाव जला दे  
आंखों की पुतलियों के अलावा   
पूरी देह को कहीं सफेद न कर दे  
यह बर्फ की चादर  
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(तस्वीर : श्रीमती प्रीति ठक्कर द्वारा)       





  
       


  
 

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

जिंदगी का सफ़र

जिंदगी का सफर जारी है
तकलीफों की कड़ी धूप में
जीने का हौंसला मेरा बढ़ाती है
दुआओं की घनी छाँव
बीतते लम्हें नई राह दिखा जाते हैं
मुझे इस सफर में
ईमान की राह में थमेंगे नहीं
वक्त के काँटे चुभे ये पाँव

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(तस्वीर श्रीमती प्रीति ठक्कर द्वारा) 

आँसू हमारी आँखों में ही रहने दो

आँसू अपने गमों के हमारी आँखों में ही रहने दो
न जाने किस वक्त ये अंगारे बन खाक कर देंगे

हैवानों अब इंसानियत का लहू बहाना बंद कर दो
न जाने किस वक्त ये बारूद बन जमींदोज़ कर देंगे

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(सांकेतिक चित्र : गूगल से साभार)       

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

नापाक हैवानियत
















नापाक हैवानियत ख़्वाबों को भी
बेख़ौफ़ निशाना बनाती है  
पाक इंसानियत नन्हें ताबूतों में भी
खुद को मरा पाती है

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(सांकेतिक चित्र : गूगल से साभार)    

इंसानियत की मौत

इंसानियत की मौत को देख कर
आतंक मुस्कुरा रहा है
अपना वजूद ख़त्म होता देख
अमन चैन आंसू बहा रहा है
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(सांकेतिक चित्र : गूगल से साभार)    

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

मुखौटा

परदा जब गिरता है
जीवन के रंगमंच का
तब दुखी हो जाता हैं
मुखौटा
देख कर असली चेहरा
अपने ही किरदार का
फिर भाव विहीन होकर
मुखौटा
निष्प्राण देह को तज कर
आशाओं की साँस के साथ
नया किरदार ढूंढ लेता है
मुखौटा
बार बार किरदार ढूंढता है
मुखौटा
किंतु सदैव निराश होता है
मुखौटा
तलाश में अब बूढ़ा हो गया है
मुखौटा
किरदार संग बेजान हो गया है  
मुखौटा  
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र गूगल से साभार)   

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

दिलीप कुमार को जन्म दिन की बधाई और मंगल कामनाएं


हमारा यह सौभाग्य है कि वर्ष 1995 में दिलीप साहब द्वारा टीवी जगत के प्रदत्त पहले लम्बे इंटरव्यू का अवसर "जी सिनेमा" में  प्रसारित होने वाले टीवी न्यूज सीरियल "अनबन" के लिए मिला था। उन पर बने आधे-आधे घंटे के दो एपिसोड टेलीकास्ट हुए थे। संजू सिन्हा द्वारा निर्देशित इस सीरियल का तब मैं पटकथा लेखक और मुख्य सहायक निर्देशक था। दिलीप साहब के साक्षात्कार का फिल्मांकन उनके पाली हिल, बांद्रा, मुम्बई स्थित बंगले में सुबह से शाम तक किया गया था। पहले साक्षात्कार के अलावा उस रोज उनके साथ व्यतीत अंतरंग क्षण, स्नेह और पारिवारिक व्यवहार मेरे जीवन के लिए यादगार और अविस्मरणीय हैं। इस दौरान दिलीप साहब की सेवाभावी धर्मपत्नी सायराबानो से प्राप्त स्नेह और आतिथ्य सत्कार की यादें आज भी जीवंत हैं। गौरतलब है कि दिलीप साहब का यह साक्षात्कार फिल्म "कलिंगा" के निर्माता सुधाकर बोकड़े के साथ हुई उनकी अनबन पर आधारित था। दिलीप साहब के निर्देशन में फिल्म "कलिंगा" के निर्माण में विलम्ब को लेकर सुधाकर बोकाड़े के साथ उनके बीच विवाद, आरोप प्रत्यारोप का लम्बा दौर चला था, जो फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था। दिलीप साहब ने हमें इसी शर्त पर उन पर तत्संबंधी दो एपिसोड बनाने की मंजूरी दी थी कि वे अपनी बात लगातार एक ही बैठक में बोलेंगे। उनके इशारे पर ही कैमरा ऑन और अॉफ होगा। केवल लंच के वक्त ही वे अपने कमरे में जाएंगे। फ़ाइनल एडिटिंग और प्रतीकात्मक तौर पर फिल्म के दृश्यों की मिक्सिंग भी उनके मन मुताबिक और निज सचिव की मौजूदगी में ही होगी ताकि विषय और साक्षात्कार के साथ न्याय हो सके। हमने भी दिलीप साहब की गरिमा और मान सम्मान के मद्देनजर शर्तों का पालन भी किया। उल्लेखनीय है कि दूसरे एपिसोड में ही निर्माता सुधाकर बोकाड़े ने अपने इंटरव्यू में दिलीप साहब से अपने आरोप और बयान पर माफी मांग ली थी। दूसरे एपिसोड के टेलीकास्ट होने के बाद दोनों के मध्य विवाद का पटाक्षेप भी हो गया। इस खुशी में दिलीप साहब ने होटल ताज में पार्टी दी और वहीं प्रेस कांफ्रेंस लेकर हमारे सीरियल "अनबन" को श्रेय देते हुए अपने विवाद की समाप्ति की घोषणा भी की। बॉलीवुड के विवादास्पद विषयों पर आधारित यह साप्ताहिक न्यूज कंट्रोवर्सी सीरियल उन दिनों बेहद लोकप्रिय हुआ था। 31 दिसंबर 1995 की शाम को जी टीवी पर भी प्रसारित हुए "अनबन 95 स्पेशल" कार्यक्रम में भी इन दोनों कड़ियों की मुख्य झलकियाँ शामिल थीं। दैनिक भास्कर बिलासपुर सहित देश के विभिन्न अख़बारों और पत्रिकाओं में इसकी समीक्षा रपट भी प्रकाशित हुई थी। ईश्वर से कामना है कि दिलीप साहब स्वस्थ और दीर्घायु हों।      
(ग्रुप फोटो में दिलीप साहब के साथ दृष्टिगोचर निर्देशक संजू सिन्हा और मैं )  
@ दिनेश ठक्कर "बापा"

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

दाम्पत्य जीवन

दंभ परे रख कर
जीना पड़ता है
दाम्पत्य जीवन
बनना होता है
परस्पर पूरक
रहना होता है
एकाकार होकर
तभी निभता है
दाम्पत्य जीवन

सुख दुख दो ऋतुएं हैं
दाम्पत्य जीवन की
समन्वय आवश्यक है
ऋतु परिवर्तन में
पतझड़ और बहार
आपसी परीक्षा लेते हैं
दाम्पत्य जीवन की
समझौता और जिम्मेवारी
पुष्पित करती है बगिया
दाम्पत्य जीवन की
फिर महकते हैं
समर्पण के फूल

इन्हीं सिद्धांतों के जल से
मेरे माता पिता ने भी
पुष्पित की थी बगिया
दाम्पत्य जीवन की
मैंने भी सिंचित की है
विरासत के जल से बगिया
दाम्पत्य जीवन की
किंतु समर्पण के फूल महके हैं
संगिनी के निःस्वार्थ सिंचन से
इसीलिए पुष्पित पल्लवित है
हमारा दाम्पत्य जीवन

@ दिनेश ठक्कर "बापा"




 



मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

फिल्म क्षेत्र के मेरे गुरू शत्रुघ्न सिन्हा जी को जन्म दिन की बधाई


फिल्म क्षेत्र के मेरे गुरु शत्रुघ्न सिन्हा जी को जन्म दिन
(9 दिसंबर) की बधाई और मंगल कामनाएं
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(ग्रुप फोटो वर्ष 1995 में प्रदर्शित फिल्म "अग्नि प्रेम" के सेट की है, जिसमें मुख्य अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा जी, निर्देशक एस. रूकुन जी और मैं सहायक निर्देशक बतौर अग्रिम पंक्ति में दृष्टिगोचर हूँ। शत्रुघ्न सिन्हा जी के सहयोग और मार्गदर्शन से ही इस फिल्म से मैंने असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में अपना फिल्म कैरियर शुरू किया था)