अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

सोमवार, 30 नवंबर 2015

जुबाँ पर लगाओ लगाम


जुमलों की चिकनी चुपड़ी
सड़क पर
बेकाबू होकर भागती
जुबाँ पर लगाओ लगाम
उसे रखो काबू में
तलुओ में ठोंको नाल
लोकतंत्र के सफर में
निर्जीव न समझो
रास्ते के पत्थरों को
जब वे उछले
तब चोट लगी गहरी
बिगड़ गया चाल चेहरा
हालत हालात यह है
जो जुबाँ
भागा करती थी सरपट
वो अब
रेंग रही है हांफते हुए
बंद हो गई है बोलती
जो जुबाँ
उगला करती थी आग
उस पर
अब फिर गया है पानी !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार )

रविवार, 29 नवंबर 2015

कन्याकुमारी स्थित गांधी स्मारक मंडपम

कन्याकुमारी में महात्मा गांधी की स्मृतियों को जीवंत बनाये रखने के उद्देश्य से वर्ष 1956 में गांधी स्मारक  मंडपम बनाया गया था। महात्मा गांधी वर्ष 1937 में कन्याकुमारी पधारे थे। कन्याकुमारी की प्राचीन महत्ता, त्रिवेणी संगम और इसके प्राकृतिक सौंदर्य से वे अत्यंत प्रभावित हुए थे। इसीलिये उनके देहावसान के पश्चात अस्थियां यहां समुद्र में विसर्जित की गई थी। उनकी स्मृति स्वरूप समुद्र तट पर निर्मित इस स्मारक मंडपम का वास्तु और स्थापत्य शिल्प बेहद आकर्षक तथा अनूठा है। इसके आकार प्रकार की प्रमुख विशेषता यह है कि महात्मा गांधी की जन्म तिथि पर सूरज की पहली किरणें उनकी समाधि पर पड़ती हैं, जहां उनकी राख श्रद्धापूर्वक सम्हाल कर रखी गई है। कन्याकुमारी आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों में यह स्मारक मंडपम भी आकर्षण का केंद्र है।

@ दिनेश ठक्कर बापा

शनिवार, 28 नवंबर 2015

कन्याकुमारी स्थित स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक

कन्याकुमारी के तट से करीब पांच सौ मीटर दूर समुद्र के बीच दो विशाल चट्टानों में से एक पर निर्मित स्वामी विवेकानंद स्मारक का स्थापत्य शिल्प आकर्षक है। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद देश का प्रचार करने विदेश प्रस्थान से पूर्व वर्ष 1892 में कन्याकुमारी पधारे थे। इसी चट्टान पर उन्होंने तीन दिनों तक ध्यान साधना की थी। जिसके बाद उन्होंने "मानव सेवा ही माधव सेवा" सहित कई कल्याणपरक सन्देश दिए थे।
वर्ष 1963-64 में पूरे देश में स्वामी विवेकानंद जन्म शताब्दी वर्ष मनाया गया था। इस मौके पर गठित विवेकानंद शिला स्मारक समिति ने इसी ऐतिहासिक चट्टान पर स्मृति सम्मान बतौर स्मारक बनाने की योजना बनाई थी, जो वर्ष 1970 में साकार हुई थी। स्मारक निर्मित होने के पश्चात मानव सेवा के सन्देश को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करने के निमित्त विवेकानंद केंद्र की स्थापना भी हुई थी।
जानकारों का कहना है कि इसी चट्टान पर प्राचीनकाल में देवी का मूल मंदिर था, जो कालान्तर में तट के निकट स्थानांतरित कर दिया गया था। यह भी मान्यता प्रचलित है कि इसी चट्टान पर देवी कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। इस चट्टान पर प्राकृतिक रूप से बने चरण चिन्ह को श्रद्धालु देवी के चरण चिन्ह बतौर पूजते हैं। इसीलिये यह चट्टान "श्रीपाद पारै" (चट्टान) के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस चट्टान पर ही श्रीपाद मंडपम, विवेकानंद मंडपम और ध्यान मंडपम बने हैं। धातु निर्मित स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा बेहद आकर्षक है।
स्मारक परिसर में स्वामी विवेकानंद साहित्य प्रदर्शन विक्रय केंद्र भी स्थापित किया गया है। यह स्मारक स्थल कन्याकुमारी आने वाले पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। कन्याकुमारी के तट से यहां तक आने जाने बोट का सफ़र भी रोमांचकारी रहता है। शाम के बाद इस स्मारक स्थल की रंग बिरंगी प्रकाश सजावट मन मोह लेती है।
@ दिनेश ठक्कर बापा

कन्याकुमारी से कामनाएं



खड़ा हूँ मैं तट पर कन्याकुमारी के
यह संगम स्थल है
हिंद महासागर
बंगाल की खाड़ी
और अरब सागर का
तीन रंगों वाले पानी का मिलन स्थल है
कन्याकुमारी
उगते और ढलते सूरज का साक्षी स्थल है
कन्याकुमारी
चोल, चेर, पांड्य का राज स्थल रहा है
कन्याकुमारी
पौराणिक कथा मिथकों का स्थल रहा है
कन्याकुमारी
परशुराम के फरसे के गिरने से उभरा है
कन्याकुमारी
महाशक्ति अवतार कन्या का तप स्थल है
कन्याकुमारी
शक्ति-कन्या का शिव से विवाह न होने पर
कुँवारी रहने का प्रतिज्ञा स्थल है
कन्याकुमारी
कुँवारी कन्या से ही मरण का वरदान प्राप्त
असुर बाणासुर के अत्याचारों का साक्षी है
कन्याकुमारी
बाणासुर से देवी कन्या के युद्ध का स्थल है
कन्याकुमारी
कन्या के हाथों बाणासुर के वध का स्थल है
कन्याकुमारी

खड़ा हूँ मैं तट पर कन्याकुमारी के
त्रिवेणी संगम के मनोरम दृश्य के बावजूद
मन व्यथित सा है
कहते सुनते हैं
कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश एक है
भौगोलिक दृष्टि
और नक्शे से यह सच है
किन्तु मानसिक दृष्टि
और मन से क्या सचमुच हम एक हैं ?
जब सागर आपस में मिल सकते हैं
तो हमारा मन आपस में क्यों नहीं मिलता ?
अलगाववाद की लहरें क्यों झकझोरती हैं ?
सद्भाव भाईचारा देश प्रेम का संगम कब होगा ?
व्यथित कर रहे हैं यक्ष प्रश्न
देश की कन्या कुमारियों की अस्मत
आखिर कब तक लुटती रहेगी ?
कलयुगी बाणासुरों का खात्मा कब होगा ?
अशक्त कुपोषित निरक्षर कब तक रहेंगी
कन्या कुमारियाँ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के जुमले नारे
आखिर सही अर्थों में कब फलीभूत होंगे ?

खड़ा हूँ मैं तट पर कन्याकुमारी के
प्रार्थना है शक्ति की देवी कन्याकुमारी से
हे देवी
फिर से जन्म लीजिए
और समूल खात्मा कीजिए
सर्वव्याप्त कलयुगी बाणासुरों का
ताकि सुरक्षित निर्भय शक्तिवान सुखी रहें
कन्या कुमारियां !
@ दिनेश ठक्कर बापा

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

समंदर पर लहरों की उछलकूद


उछलकूद मचा रही हैं लहरें
सूर्योदय के समय समंदर पर
सर्द हवा के झोंके
टकरा रहे हैं आँखों में
नम कर रही हैं नज़रों को
किनारों से मिलने बेताब लहरें
यदि पलकें खोलें
तो भिगो देती हैं
समंदर की बेसब्र सी बूँदें
मुझे चैन से रहने दो
अपने पथरीले किनारों पर
सपने देखती आँखों पर
जागृत सूर्य किरणें रख दो
उछलकूद मचाती यह लहरें
मुझे कहीं असहिष्णु न कर दे !
@ दिनेश ठक्कर बापा

बुधवार, 25 नवंबर 2015

रामेश्वरम को जोड़ने वाला पम्बन रेलवे और रोड ब्रिज





रामेश्वरम द्वीप को तमिलनाडु राज्य के शेष हिस्से से जोड़ने वाला पम्बन रेलवे और रोड ब्रिज से गुजरना रोमांचकारी क्षण होता है। बताया जाता है कि ढाई मील चौड़ी खाड़ी को पार करने के लिए प्राचीन समय में यहां  केवल नावों का ही सहारा था। करीब चार सौ साल पहले राजा कृष्णप्पा नायकं ने इस पर पत्थरों का बड़ा पुल बनवाया था, जो कालान्तर में समुद्री तूफ़ान के कारण टूट गया था। फिर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान जर्मन इंजीनियर की सहायता से उस टूटे पुल की जगह रेल सेवा के लिए आकर्षक पुल निर्मित किया गया। वर्ष 1963 में यह पम्बन रेलवे ब्रिज पुनः क्षतिग्रस्त हो गया। रेल प्रशासन ने इसके पुनर्निर्माण के लिए छह माह की अवधि निर्धारित की थी, किन्तु इस इलाके के इंचार्ज अफसर ने यह अवधि घटा कर तीन माह कर दी और इसकी जिम्मेदारी केरल निवासी सिविल इंजीनियर ई. श्रीधरन को सौंप दी गई। आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने केवल 45 दिनों के अंदर यह कार्य पूर्ण करके दिखा दिया। ज्ञात हो कि कोलकाता,  दिल्ली मेट्रो और कोंकण रेल सेवा भी पद्म विभूषण से सम्मानित ई. श्रीधरन के प्रखर मस्तिष्क, कुशल योजना, कार्यप्रणाली और सक्षम नेतृत्व की ही देन है।रामेश्वरम निवासी मिसाइल मैन डा.ए. पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ मेट्रो मैन ई. श्रीधरन के आत्मीय संबंध थे। बहरहाल.पम्बन ब्रिज पहले जहाजों के आवागमन के लिए मध्य भाग से खुल कर ऊपर उठ जाया करता था। इस स्थान पर हिन्द महासागर का पानी दक्षिण से उत्तर की तरफ प्रवाहित होता दिखाई देता है। रामेश्वरम से चेन्नई करीब सवा चार सौ मील दूर दक्षिण पूर्व में है।समानांतर पम्बन रोड ब्रिज से भी आवागमन का आनंद अविस्मरणीय रहता है, बशर्ते मौसम अनुकूल हो।
@ दिनेश ठक्कर बापा

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

कलाम की कविता "खोज"



श्रद्धेय डा. ए. पी.जे. अब्दुल कलाम की अंतिम साँसों तक उनका कवि रूप भी प्रेरणादायी था। तमिल और अंग्रेजी में लिखी उनकी कविताएँ सोद्देश्य और संदेशपरक हैं। उनकी रचनाओं में ज्ञान, शांति, हरित क्रान्ति, खुशहाली आदि की चाहत और व्यथा भी झलकती है। रामेश्वरम स्थित डा. कलाम के परिजनों द्वारा संचालित स्मृति संग्रहालय  "हाऊस ऑफ कलाम" में उनकी चुनिंदा कविताओं के पोस्टर भी हिंदी में अनुवाद के साथ प्रदर्शित किये गए है। कविता "खोज" विशेष तौर पर ध्यान आकर्षित करती है-

मैं चढ़ते चढ़ते हाँफ रहा हूँ
कहाँ है शिखर ?
हे मेरे ईश्वर !
मैं खोद रहा हूँ जहाँ-तहाँ
ज्ञान का खजाना कहाँ है छिपा ?
हे परमपिता !
मैं दूर समंदर में खे रहा हूँ नैया
खोज रहा हूँ एक टापू
कहाँ है अमन ?
हे मेरे भगवान !
हे ईश्वर,
मेरे राष्ट्र को दो वरदान
मेहनत और ज्ञान का दान
जिससे खिल उठे खेत-खलिहान
आए हरियाली चारों ओर खुशहाली ।

सोमवार, 23 नवंबर 2015

रामेश्वरम में कर्मयोगी कलाम की स्मृतियों के संग




रामेश्वरम स्थित हाऊस ऑफ कलाम केवल दो मंजिला भवन नहीं, बल्कि कर्मयोगी डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की अविस्मरणीय स्मृतियों की सर्व प्रिय अमूल्य  धरोहर है। यहां उनके बचपन से लेकर अंतिम साँसों तक की स्मृतियाँ संजो कर प्रदर्शित की गई है, जो हर वर्ग के लोगों के लिए प्रेरणादायी है। मिशन ऑफ लाइफ गैलरी वास्तव में सार्थक जीवन और देश के लिए जीने का संदेश देती है। यहां इनके पैतृक आवास, पूर्वजों की निशानी, संयुक्त परिवार की यादें, प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त रामेश्वरम का पंचायत प्राथमिक विद्यालय, प्रेरक रहे शिक्षकों के साथ तस्वीरें, अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक होने,  भारतीय रक्षा अनुसंधान एवम् विकास संस्थान, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में प्रवेश, परियोजना निदेशक बतौर स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान परियोजना पर कार्य, रोहिणी का सफल मिशन, इसरो लांच व्हीकल प्रोग्राम, स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल) की डिजाइन, स्वदेशी तकनीक से अग्नि, पृथ्वी मिसाइल का निर्माण-परीक्षण, पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण, मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार, मार्गदर्शक वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विक्रम साराभाई, प्रो. सतीश धवन, डा. ब्रम्हप्रकाश के साथ यादगार महत्वपूर्ण क्षणों की तस्वीरें, सर्वमान्य राष्ट्रपति बतौर कार्यकाल,  तत्पश्चात विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं में मानद फैलो, विजिटिंग प्रोफेसर और कुलाधिपति रहने के दौरान की तस्वीरें, भारत रत्न सहित विभिन्न राष्ट्रीय सम्मान, उपाधियाँ, पदक और तत्संबंधी समारोह के छाया चित्रों का अनूठा संग्रह प्रदर्शन दर्शकों को अभिभूत कर देता है। डा. कलाम का कर्नाटक भक्ति संगीत और शास्त्रीय संगीत से गहरा जुड़ाव था। सरस्वती वीणा, वेन्नई वादन की तस्वीर से यह स्पष्ट होता है।
मिसाइल मैन के नाम से श्रद्धापूर्वक स्मरण किये जाने वाले इस कर्मयोगी का साहित्यिक जीवन भी बेहद अनुकरणीय और प्रेरणादायक है। उनकी आत्मकथात्मक किताबें बच्चों और युवाओं को सार्थक राह दिखाती हैं। उनकी जीवन कथा पुस्तक "माय जर्नी"  के अलावा "इग्नाइटेड माइंड्स: अनलेशिंग द पावर विदिन इंडिया", "द ल्युमिनिअस स्पार्क्स: ए बायोग्राफी इन वर्स एंड कलर्स", "इंस्पायरिंग थॉट", "चिल्ड्रन आस्क कलाम", "मिशन इंडिया: ए विसन फॉर इंडियन यूथ", "गाइडिंग सोल्स: डायलॉग्स आन द पर्पस ऑफ लाइफ", कविता संग्रह "द लाइफ ट्री" आदि किताबें  सोद्देश्य जीवन कर्म का मार्ग प्रशस्त करती है। ये किताबें यहां प्रदर्शन और विक्रय के लिए रखी गई हैं। इस संग्रहालय का संचालन और रखरखाव डा. कलाम के बड़े भाई और भतीजे द्वारा किया जा रहा है। इसके अलावा वे बाजू वाले भवन में स्व रोजगार बतौर समुद्री सामग्री और उनसे बने सजावटी सामान, रत्न, रुद्राक्ष, पूजन आदि सामग्री का विक्रय भी करते है। बहरहाल,  डा. कलाम के असाधारण व्यक्तित्व और उनकी महती राष्ट्र प्रेरक उपलब्धियों को दर्शाने वाले इस संग्रहालय से लोग अपने साथ अमिट यादें लेकर लौटते है।
@ दिनेश ठक्कर बापा
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शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

रामेश्वरम का राम पादुका मंदिर

रामेश्वरम से लगभग डेढ़ मील दूर उत्तर पूर्व में गंधमादन पर्वत पर स्थित राम पादुका मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में काले पत्थर से निर्मित दो पादुकाओं, चरण चिन्ह की पूजा अर्चना भक्तों द्वारा की जाती है। श्रद्धालुओं में यह मिथक प्रचलित है कि यह चरण चिन्ह श्रीराम के हैं। इस मंदिर परिसर से रामेश्वरम का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यहां बेर और राम फल बेचने वाली ग्रामीण महिलाओं को शबरी स्वरूप मान कर श्रद्धालुजन उनसे यह सामग्री खरीद कर प्रसाद बतौर बाँटते भी हैं। गंधमादन पर्वत दरअसल एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसके शिखर पर यह मंदिर बना है। भक्तों में ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी ने समुद्र को लांघने के लिए यहीं से छलांग मारी थी। श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए इसी स्थल पर ही अपनी सेना संगठित की थी।
@ दिनेश ठक्कर बापा

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

रामेश्वरम द्वीप का धनुषकोडी तीर्थ


रामेश्वरम द्वीप के दक्षिण दिशा की तरफ स्थित धनुषकोडी समुद्र तट पौराणिक मान्यता की दृष्टि से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। एक मान्यता यह है कि श्रीराम ने अपने धनुष के एक छोर से इस स्थल को सेतु निर्माण के लिए चिन्हांकित किया था। दूसरी मान्यता हैं कि विभीषण के निवेदन पर श्रीराम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया था। इन्ही मान्यताओं के कारण इसका नाम धनुषकोडी पड़ा। श्रद्धालुओं में यह मान्यता भी है कि चारों धाम की यात्रा का समापन धनुष कोडी में स्नान पूजा अर्चना के बाद होता है। यह बंगाल की खाड़ी (महोदधि) और हिंद महासागर (रत्नाकर) का संगम स्थल भी होने के कारण इसकी पवित्रता अधिक मानी जाती है। यहां अस्थि विसर्जन और पितृ तर्पण भी किये जाने की प्रथा है। यहां से श्रीलंका 27 किमी दूर है। 22 दिसंबर 1964 की रात को श्रीलंका के वावुनिया को पार करते हुए भीषण समुद्री तूफ़ान ने धनुषकोडी रेलवे स्टेशन और गांव को अपनी चपेट में ले लिया था। पम्बन धनुषकोडी पैसेंजर ट्रेन समुद्र में समा गई थी। इस हादसे में सभी 110 यात्री और 5 रेल कर्मियों की मौत हो गई थी। समुद्री तूफ़ान से धनुषकोडी गांव के 1800 से अधिक जनों की जान भी चली गई थी। कहा जाता है कि समुद्री तूफानी लहरें रामेश्वरम के रामनाथ स्वामी मंदिर के ठीक सामने ठहर गई थी।समुद्री तूफ़ान से बचने के लिए इस मुख्य मंदिर में सैकड़ों श्रद्धालु शरण लिए हुए थे। इस समुद्री तूफ़ान के ध्वंशावशेष आज भी  धनुषकोडी और आसपास देखे जा सकते है।धनुषकोडी रेलवे स्टेशन, रेल लाइन, चर्च आदि के ध्वंशावशेष झकझोर देते हैं। धनुषकोडी गांव  आने के लिए सड़क और समुद्री मार्ग ही माध्यम है। जबकि इसके समुद्र तट तक रेतीले रास्ते से होकर जीप टेम्पो के जरिये जाना पड़ता है।सूर्यास्त के बाद यहां श्रद्धालुओं को पुलिस और नौसेना कर्मियों द्वारा न रुकने की हिदायत दी जाती है।
@ दिनेश ठक्कर बापा
(तस्वीरें श्रीमती प्रीति ठक्कर द्वारा)

शनिवार, 14 नवंबर 2015

जागो शोषण मुक्त कल के लिए

जागो ऊंघता हुआ जमीर
जागो
क्योंकि समय बीतता जा रहा है
जागो क्योंकि बढ़ता जा रहा है
शोषकों का कुनबा
और निर्बाध फैलता ही जा रहा है
शोषकों का क्षेत्रफल
जागो क्योंकि फंसता ही जा रहा है
शोषण के जाल में निरंतर
दबा कुचला निर्धन बेबस बचपन
जागो हमारे सुनहरे भविष्य के लिए
और हमारे शोषण मुक्त कल के लिए

जागो क्योंकि
काम के बोझ तले बचपन
हो रहा है समय से पहले बूढ़ा
जागो क्योंकि
वर्तमान अभी सो रहा है
जागो क्योंकि अतीत तो
सदा के लिए सो गया है
जागो क्योंकि
भविष्य की राह में
स्वार्थी रोड़े अटका रहे हैं

जागो क्योंकि
पत्थर खदानों में
ईंट भट्ठों में
चारे वालों के चरागाह में
असहिष्णु बेदर्द बाजारों में
चाय वालों की दुकानों में
देश बेचने वालों के बंगलों में
भविष्य का शरीर
और मासूम जीवन
पसीने पसीने हो रहा है

जागो क्योंकि
आने वाला कल
नए सिरे से गढ़ना होगा
जागो क्योंकि
जुमलों से बात नहीं बनेगी
और न ही भविष्य रचेगा
जागो क्योंकि
वर्तमान को नींद से जगाना
और समय रहते सुधारना
अब आवश्यक हो गया है !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)





बुधवार, 11 नवंबर 2015

हवा का रूख

दीप न बुझाओ
निर्धन देहरी के
देर नहीं लगती
बदलते
हवा का रूख
अंधेरा न फैलाओ
कच्ची छतों पर
समय नहीं लगता
बदलते
उजाले की दिशा।

दीपक जलाओ
मिलजुल कर
इंसानियत का
उजियारा फैलाओ
सेवा सद्भावना का
देर नहीं लगती
बदलते
हवा का रूख।

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

शनिवार, 7 नवंबर 2015

देश पर नहीं है किसी का एकाधिकार

अगर हमारे देश के
एक राज्य में जंगल राज है
तो क्या दिखाएंगे
दूसरे राज्य में भी जंगलीपन?
अगर एक राज्य में हो रहा है
कट्टर पंथियों द्वारा खूनखराबा
तो क्या बहाएंगे
दूसरे राज्य में भी निर्दोषों का खून?
अगर स्वार्थियों की मौन स्वीकृति है
तो हमें सतर्क रह कर
मुखर होने की आवश्यकता है।

देश पर नहीं है
किसी का एकाधिकार
और यह नहीं है
किसी की जागीर
कि एक ने कुछ सच कहा
तो दूसरा जुबान ही काट दे
कि एक ने कुछ सच लिखा
तो दूसरा उसका हाथ ही नहीं
गर्दन भी धड़ से अलग कर दे
कि एक ने कुछ सच दिखाया
तो दूसरा जीवन पर्दा ही जला दे
इसके बावजूद हम
संविधान सद्भाव के दायरे में रह कर
कुछ सच न कहें
कुछ सच न लिखें
कुछ सच न दिखाएं
कुछ चिंतन मीमांशा न करें
कुछ विचार विमर्श न करें
मात्र अपने में मस्त रहें
सिर्फ खा पीकर सोते रहें
सब कुछ देख सुन जान कर
बापू के बंदर जैसे बने रहें
और मुर्दे की तरह जीते रहें
तो हमें
नहीं है जीने का भी अधिकार।

इंसानियत का धर्म कर्म छोड़
स्व धर्म कुसंस्कृति की लेकर आड़
देश भक्ति का प्रमाण पत्र
लेने देने की मची है होड़
असहिष्णुता की सीमाएं लांघ कर
एक दूसरे को नीचा दिखा कर
देश छोड़ने की दे रहे है नसीहत
इस देश से भेजने
उस देश से बुलाने
हो रही है स्वार्थी सियासी जोड़ तोड़
इसके बावजूद हम
क्या यह सब कुछ बर्दाश्त करते रहेंगे?

यह कदापि न भूलो
निर्दोष का सरे राह बहा खून
निःशक्त का रक्तरंजित शव
निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म
देश ही नहीं
मानवता के लिए खुली चुनौती है
इसके बावजूद
क्या हमारा खून नहीं खौलेगा?

यह सब कुछ देख समझ कर भी
स्वार्थी नेताओं का मौन रहना
टोपीबाजों द्वारा कुर्सी हथियाना
देश भक्ति के जुमले उछालना
सद्भाव के नारों से भ्रमित करना
आम जनता को है धोखा देना
धर्म रक्षा के नाम पर
स्व हित साध रहे है
अधर्म के रखवाले
देश हित के नाम पर
अपना अपनों का भला कर रहें हैं
देश के स्वयंभू चौकीदार
इसके बावजूद ये सब
निर्लज्जता से जता रहे हैं
देश पर अपना एकाधिकार !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)