मुफ़लिसी में मौत बन जाती है ये ज़िन्दगी
जीते जी ख़ुद कफ़न बुनती है ये ज़िन्दगी
क़राबतदारों की दूरी भी हो जाती है लम्बी
हमसफ़र का फ़ासला बढ़ाती है ये ज़िन्दगी
रुस्वाई की कील पर टंग जाते हैं रिश्ते
सबके लिए बोझ बन जाती है ये ज़िन्दगी
उधार की सांसें भी थम जाती है वक़्ते बद
इलाज के बगैर दम तोड़ देती है ये ज़िन्दगी
लाचार मैयित को चार कंधे भी नहीं मिलते
आंसू बहाते दफ़न हो जाती है ये ज़िन्दगी
बेरहमों की बस्ती में इंसानियत नहीं बसती
अकेले कंधे से अलविदा होती है ये ज़िन्दगी
सियासतदानों के कंधों पर है वादों की गठरी
उम्मीदों में ही घुट कर मर जाती है ये ज़िन्दगी
जुम्हूरियत की ताकत को कमतर न समझो
मौक़ा आने पर सबक़ सिखाती है ये ज़िन्दगी
मौत के रास्तों का मुसाफ़िर है यहां हर कोई
न जाने किस मोड़ पर ख़फ़ा हो जाये ये ज़िन्दगी
@ दिनेश ठक्कर बापा
जीते जी ख़ुद कफ़न बुनती है ये ज़िन्दगी
क़राबतदारों की दूरी भी हो जाती है लम्बी
हमसफ़र का फ़ासला बढ़ाती है ये ज़िन्दगी
रुस्वाई की कील पर टंग जाते हैं रिश्ते
सबके लिए बोझ बन जाती है ये ज़िन्दगी
उधार की सांसें भी थम जाती है वक़्ते बद
इलाज के बगैर दम तोड़ देती है ये ज़िन्दगी
लाचार मैयित को चार कंधे भी नहीं मिलते
आंसू बहाते दफ़न हो जाती है ये ज़िन्दगी
बेरहमों की बस्ती में इंसानियत नहीं बसती
अकेले कंधे से अलविदा होती है ये ज़िन्दगी
सियासतदानों के कंधों पर है वादों की गठरी
उम्मीदों में ही घुट कर मर जाती है ये ज़िन्दगी
जुम्हूरियत की ताकत को कमतर न समझो
मौक़ा आने पर सबक़ सिखाती है ये ज़िन्दगी
मौत के रास्तों का मुसाफ़िर है यहां हर कोई
न जाने किस मोड़ पर ख़फ़ा हो जाये ये ज़िन्दगी
@ दिनेश ठक्कर बापा