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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

दिलीप कुमार के साथ यादगार लम्हें

अभिनय सम्राट दिलीप साहब को जन्म दिन की बधाई। वर्ष 1995 में जी सिनेमा में प्रसारित धारावाहिक "अनबन" के लिए दिलीप साहब का पहला विस्तृत साक्षात्कार मुंबई के पाली हिल स्थित उनके बंगले में हमने दिन भर फिल्माया था। उसी अवसर की यह यादगार तस्वीर, जो मेरे लिए धरोहर सदृश्य है। तस्वीर में दिलीप साहब के साथ लेखक- मुख्य सहायक निर्देशक बतौर मैं और निर्माता-निर्देशक संजू सिन्हा दृष्टिगोचर हो रहे हैं।    

मायापुरी में दिलीप कुमार के साथ यादगार तस्वीर

वर्ष 1995 में टीवी चैनल "जी सिनेमा" में प्रसारित न्यूज सीरियल  "अनबन" के लिए दिलीप कुमार का पहला विस्तृत साक्षात्कार मुंबई के पाली हिल स्थित उनके बंगले में हमने दिन भर फिल्माया था। उसी अवसर की यह यादगार तस्वीर फिल्म साप्ताहिक "मायापुरी" में प्रकाशित हुई थी, जो मेरे लिए धरोहर सदृश्य है। तस्वीर में दिलीप साहब के साथ लेखक- मुख्य सहायक निर्देशक बतौर मैं, मेरे बॉस निर्माता-निर्देशक संजू सिन्हा सहित यूनिट के प्रमुख सदस्य दृष्टिगोचर हो रहे हैं।    

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

सोशल साइट्स पर "जला सो अल्लाह"

मेरी पहली प्रकाशित किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) को देश-विदेश में सुधि पाठकों द्वारा सराहे जाने पर आप सभी का ह्रदय से आभारी हूँ। इस किताब को मैंने निःशुल्क सोशल साइट्स पर भी उपलब्ध कराया है। इसके सभी चालीस अध्याय फेसबुक के अलावा ट्वीटर, गूगल प्लस, गूगल रीडर और मेरे ब्लॉग "बापा की बगिया" (दिनेश ठक्कर बापा डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम) के जरिये भी पढ़े जा सकते हैं। ब्लॉग "बापा की बगिया" में इस किताब को अब तक देश विदेश के ढाई हजार से ज्यादा लोगों ने इसे पढ़ा है।       

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

दैनिक भास्कर भूमि में छपी मेरी रपट

राजनांदगांव से प्रकाशित होने वाले दैनिक भास्कर भूमि में छपी मेरी रपट 

पहली बार जंगल से बाहर निकल बाहरी दुनिया देखी आदिवासी विद्यार्थियों ने

छत्तीसगढ़ के अचानकमार प्रोजेक्ट टाइगर एरिया के तहत आने वाले वन ग्राम छपरवा स्थित अभ्यारण्य शिक्षण समिति हायर सेकेंडरी स्कूल के आदिवासी विद्यार्थियों को गत दिवस बस में शिवरीनारायण और सिरपुर ले जाकर वहां के पुरातात्विक स्थलों की गौरवमयी धरोहर से अवगत कराया गया. इस स्कूल के मानसेवी प्राचार्य और समाजसेवी पीडी खैरा के नेतृत्त्व में गए दल में ४६ विद्यार्थी थे, जिनमें २० छात्राएं भी शामिल थीं. इसमें कई निर्धन आदिवासी विद्यार्थी ऐसे थे, जो पहली बार वन क्षेत्र से बाहर निकल कर बाहरी दुनिया के संपर्क में आये. जंगल से बाहर आकर वे छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक स्थल के प्राचीन पुरा धरोहर और समृद्ध विरासत से रूबरू होकर बिलकुल नया अनुभव प्राप्त किया. 
इस भ्रमण दल में कक्षा नवमीं, दसवीं और ग्यारहवीं के बीस विद्यार्थी पहली बार अपने जंगल निवास क्षेत्र से बाहर निकल कर नए और पुरा संपदायुक्त परिवेश से साक्षात्कार कर असीम आनंद और नया अनुभव प्राप्त किये . इस स्कूल के कक्षा ग्यारहवीं के मेधावी विद्यार्थी काशीराम पुरचाम,मुकेश साकेत, मनीष कंवर, बैगा छात्रा शामवती, कक्षा दसवीं की बैगा छात्रा सुनीता और कक्षा बारहवीं के छात्र अनिल कुमार की एक राय थी, कि इस तरह के भ्रमण कार्यक्रम से उनके ज्ञान में वृद्धि तो हुई साथ ही छत्तीसगढ़ की प्राचीन नगरी को देखने समझने का अवसर भी प्राप्त हुआ. इस स्कूल के शिक्षक मनीराम पनरिया, योगेश जायसवाल और चाँद सिंह पोर्ते का कहना था कि महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों को देखने जानने के बाद मिले अनुभव से उनके अध्यापन कार्य में विविधता और परिपक्वता आयेगी. प्राचार्य पीडी खैरा ने बताया कि राज्य की विरासत महाकोशल से पहले की है. राज्य की समृद्ध और गौरवशाली विरासत से विद्यार्थियों को अवगत कराना इस प्रवास का मुख्य उद्देश्य था. अनुभव की शिक्षा किताबी शिक्षा से बेहतर होती है. इस भ्रमण कार्यक्रम से हमने जंगल में रहने वाले ठेठ आदिवासी विद्यार्थियों को बाहरी दुनिया के संपर्क में लाकर उन्हें एक नया अनुभव मुहैया कराया है. वनांचल के शैक्षणिक जगत में यह एक अनूठा प्रयोग भी है. इसे सरकार को व्यवहार में लाकर आत्मसात करना चाहिए. पीडी खैर ने बताया कि यह भ्रमण कार्यक्रम बायोस्फियर क्षेत्र के डीएफओ बीपी सिंह ने प्रायोजित किया था.      
-दिनेश ठक्कर 
(दैनिक भास्कर भूमि, राजनांदगांव में प्रकाशित)   

रविवार, 2 सितंबर 2012

"पानी वही बचा सकता है, जिसकी आँखों में पानी हो"

पानी की कमी के कारण आज छत्तीसगढ़ के लोग मजदूरी करने अन्य राज्यों में पलायन कर रहे हैं. उनके खेतों को पानी नहीं दिया जा रहा है. औद्योगिक घरानों के यहाँ आने से पानी का अभाव पैदा हुआ है. औद्योगिकरण के बाद भी मजदूरी के लिए गरीब छत्तीसगढ़वासियों को राज्य से बाहर जाना पड़ रहा है. यह विचार शनिवार को पूर्व सांसद और गांधीवादी चिन्तक केयूर भूषण ने व्यक्त किये. वे होटल सेन्ट्रल पाइंट, बिलासपुर में राष्ट्रीय जल नीति २०१२ पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि थे.ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव फोरम की छत्तीसगढ़ इकाई के तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी के प्रथम सत्र में केयूर भूषण ने कहा कि आदिवासियों की जमीन औद्योगिक घरानों को दिए जाने जैसी बातों का राष्ट्रीय जल नीति के प्रारूप में विचार होना चाहिए. मुख्य वक्ता संजय विश्वास का कहना था कि सहज रूप से पानी प्राप्त करना मनुष्य का अधिकार है. जबकि औद्योगिक घरानों ने पानी को एक बिकाऊ मॉल बना दिया है. पानी के निजीकरण और व्यवसायीकरण से औद्योगिक घराने अंधाधुंध मुनाफ़ा कमा रहे हैं. इससे पानी महँगा हो गया है. आगे चलाकर पानी आम आदमी के लिए दुर्लभ हो जाएगा. 
वक्ता अनिल राजिमवाले ने कहा कि पानी उस जड़ का काम करता है जिसके बिना संस्कृति का विकास नहीं होता. दुःख की बात है कि पानी से धन कमाने वालों को पूरी छूट मिली हुई है. गौतम बंदोपाध्याय ने कहा कि पानी की चर्चा हमारी सांस्कृतिक धरोहर की चर्चा है. पानी का बाजारीकरण करना ठीक नहीं है. पानी वही बचा सकता है जिसकी आँखों में पानी हो. तभी पानीदार समाज की कल्पना की जा सकती है. पहले सत्र के समापन पर राज्य संयोजक चितरंजन बख्शी ने भावी योजनाओं की जानकारी दी. स्वागत भाषण महापौर श्रीमती वाणी राव ने दिया. संचालन वरिष्ठ पत्रकार नथमल शर्मा ने किया. इस अवसर पर शहर के प्रबुद्ध जन उपस्थित थे. 
राष्ट्रीय जल नीति के नए मसौदे पर बिलासपुर में भी बहस की शुरूआत होना अच्छा संकेत है.आम आदमियों से राष्ट्रीय जल नीति का गहरा नाता है. जल है तो जीवन है, यह जुमला इंसान के भी अस्तित्व से जुड़ा हुआ है.पानी क्या केवल एक प्राकृतिक संसाधन है अथवा जीवन के निरंतर विकास का मूलाधार है, इस बात पर भी विद्वतजनों की बहस सामाजिक सरोकार की तरफ इशारा करती है. ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव फोरम से जुड़े जल नीति विशेषज्ञ के. सोमन ने अपने शोधपरक पर्चे में खुलासा किया है कि "नई नीति में जल की उपलब्धता  का उल्लेखित डाटा वही है, जो २००२ की राष्ट्रीय नीति में भारत की भौगोलिक सीमाओं के भीतर है. जो १९९३ के आंकलन पर आधारित है. यद्दपि नई नीति बदलते जलवायु परिदृश्यों में तथा अन्य तथ्यों की आवश्यकता की बात करती है. किन्तु जल संसाधन में तेजी से आते भूमंडलीय परिवर्तन के देश के जल परिदृश्य पर ठोस और निर्णयात्मक विचार करने का प्रयास करती नहीं दिखाई देती है. बाहरी और स्थानीय जलवायु परिवर्तनों के अंतर्संबंधों की भी सुविधानुसार उपेक्षा की गई है. नई नीति भूगर्भीय जल को लोक संपदा के रूप में देखने पर आपत्ति जताती है. इसमें मांग आधारित सेवा दी जाने की वकालत करने के साथ विभेदाकारी टैरिफ के प्रस्ताव हैं. किसी गरीब को जीवन सहायक या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा की पूर्ति कैसे होगी, यह मसौदे में वर्णित नहीं किया गया है. यह नीति जल को एक आर्थिक उत्पाद मानते हुए इसके प्रभावशाली कीमत की वकालत करती है". के. सोमन अपने पर्चे में यह भी लिखते हैं कि "जल लोगों का मूल अधिकार है न कि बेचे जाने वाली और व्यावसायिक चीज. मानव, पशु-पक्षी और पौधों के लिए जल वरदान है. इस पर इनका अधिकार है. जल नीति राष्ट्र के भौगोलिक, ऐतिहासिक, अलग अलग क्षेत्रों की मिट्टी की विविधताओं और उसके भूजल के स्तर डाटा के संबंधों और सामान्य औसत वर्षा तथा वैज्ञानिक आधार पर हो". बहरहाल, बिलासपुर की तरह छोटे शहरों और गाँवों में भी राष्ट्रीय जल नीति पर सार्थक चर्चा और बहस होनी चाहिए, जिससे जल जैसे उपयोगी ज्वलंत मुद्दे पर आम आदमी की भी सहभागिता बढ़े.

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

बारीघाट के बैगा आदिवासी बंधु के साथ

बारीघाट के बैगा आदिवासी बंधु और मैं  

छपरवा के आदिवासी विद्यार्थियों के संग रोटरी सेवाभावी

वन ग्राम छपरवा स्थित अभ्यारण्य शिक्षण समिति हायर सेकेंडरी स्कूल के आदिवासी विद्यार्थियों के बीच  रोटरी क्लब, बिलासपुर के अध्यक्ष देवाशीष घटक और सह सचिव गोपाल सिंहल।

छपरवा के आदिवासी विद्यार्थियों के संग यादगार पल

छपरवा स्थित अभ्यारण्य शिक्षण समिति हायर सेकेंडरी स्कूल के परिसर में आदिवासी विद्यार्थियों और सेवाभावी मानसेवी प्राचार्य पीडी खैरा (बीच में) के साथ रोटरी क्लब, बिलासपुर के अध्यक्ष देवाशीष घटक और सह सचिव गोपाल सिंहल। (सभी फोटो- कमल दुबे)  

छपरवा के आदिवासी विद्यार्थियों को मदद की पहल

(दिनेश ठक्कर "बापा")
अचानकमार प्रोजेक्ट टाइगर क्षेत्र के तहत आने वाले वन ग्राम छपरवा में बुधवार, आठ अगस्त को बिलासपुर रोटरी क्लब के पदाधिकारियों ने दस्तक देकर आदिवासी विद्यार्थियों को मदद करने की अनुकरणीय पहल की. छपरवा स्थित अभ्यारण्य शिक्षण समिति हायर सेकेंडरी स्कूल के बैगा आदिवासी सहित अन्य जाति के मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति तथा बुनियादी सुविधाएं देने के लिए विवरण संग्रहित किया गया है. यहाँ के विद्यार्थियों को खेल सामग्री भी वितरित की गई. रोटरी क्लब, बिलासपुर के अध्यक्ष देवाशीष घटक और सह सचिव गोपाल सिंहल ने बुधवार को वन ग्राम छपरवा जाकर रोटरी क्लब के नए एजेंडा को मूर्त रूप देने का सिलसिला आरम्भ किया है. रोटरी क्लब ने इस वर्ष दो मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने का निर्णय लिया है. इसके अलावा सुविधाविहीन स्कूल को गोद लेकर समस्त शैक्षणिक साधन उपलब्ध कराने का भी फैसला लिया गया है. पिछले दिनों बिलासपुर प्रवास के दौरान रोटरी क्लब के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष कल्याण बनर्जी ने भी इस दिशा में सेवा कार्य किये जाने की मंशा जाहिर की थी. उन्होंने बिलासपुर शाखा से ऐसे सेवा कार्यों की अपेक्षा भी की थी. इसी कड़ी में बिलासपुर रोटरी क्लब के अध्यक्ष देवाशीष घटक और सह सचिव गोपाल सिंहल  बुधवार को सुबह दस बजे समाजसेवी और वरिष्ठ पत्रकार कमल दुबे के मार्गदर्शन में वन ग्राम छपरवा पहुँच कर आदिवासी विद्यार्थियों से रूबरू हुए. उन्होंने शाला परिसर में उनसे तमाम तकलीफों का ब्यौरा लिया. बिजली और बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस वन ग्राम की हाई स्कूल और यहाँ अध्ययनरत गरीब आदिवासी विद्यार्थियों की समस्याओं के समाधान के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं. इस स्कूल के मानसेवी प्राचार्य और समाजसेवी पी. डी. खैरा ने रोटरी क्लब की इस अनुकरणीय पहल की सराहना की है. गौरतलब है कि पी. डी. खैरा दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं. वे एक लम्बे अरसे से छपरवा लमनी क्षेत्र में रह कर वहां के बैगा आदिवासियों और उनके बच्चों के उत्थान जैसे सेवा कार्यों में निस्स्वार्थ भावना से जुटे हुए हैं.
छपरवा की अभ्यारण्य शिक्षण समिति हायर सेकेंडरी स्कूल में इस वक्त विभिन्न जाति के ५४ विद्यार्थी अध्ययनरत हैं. इनमें बैगा, कंवर, गोंड़, पनिका, रावत, कोल, लोहार, धोबी और मुस्लिम जाति के विद्यार्थी शामिल हैं. यहाँ अब केवल तीन बैगा आदिवासी विद्यार्थी मंगल सिंह, सुनीता और शामवती पढ़ रहे हैं. इसके पहले यहाँ के कुछ बैगा विद्यार्थी अच्छे  अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण हुए थे. बारहवीं कक्षा के बाद अब वे उच्च शिक्षा की तरफ अग्रसर हुए हैं. वे प्रतियोगी परीक्षा में भी पास हुए हैं. इसी स्कूल से बैगा विद्यार्थी रतन सिंह ने गत वर्ष बारहवीं में ४५ फीसदी अंक प्राप्त किये थे. वह गणित का छात्र है. इसके पिता वन ग्राम लमनी में खेतिहर मजदूर हैं. समाजसेवी पत्रकार कमल दुबे ने इसे प्रेरित करते हुए अपने खर्च पर प्री पालीटेक्नीक टेस्ट परीक्षा दिलवाई थी, जिसमें वह चयनित भी हो गया है. अब वह पीईटी की तैयारी कर रहा है. अभी उसने कोटा के कालेज में प्रवेश लिया है. इसी तरह गोंड़ आदिवासी विद्यार्थी काशीराम ने इस बार दसवीं की परीक्षा में ७० फीसदी अंक हासिल किये थे. छपरवा की इस स्कूल के विद्यार्थी गणित विषय के साथ अंग्रेजी में भी निपुण हो गए हैं. इस स्कूल का लोकार्पण २३ जून २००८ को हुआ था. वन ग्राम विकास अभिकरण योजना के तहत इसे वन विभाग द्वारा इस समय संचालित किया जा रहा है. मुंगेली के कलेक्टर टी. सी. महावर ने भी गत दिनों इस स्कूल के विद्यार्थियों की मदद के लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा है.     

बुधवार, 25 जुलाई 2012

कच्छ के सफ़ेद रण में


फोटो: श्रीमती प्रीति ठक्कर    

अचानकमार के आदिवासी बंधु के संग


कब बदलेंगे सूरत-ए-हाल ...
(फोटो : कमल दुबे) 

बिंदावल के बैगा बच्चे


(फोटो: कमल दुबे) 

बिंदावल में प्रवासी आदिवासी के साथ

(फोटो :कमल दुबे) 

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" का लोकार्पण

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) का लोकार्पण रविवार, २५ अप्रैल को दोपहर दो बजे बिलासपुर प्रेस क्लब में संपन्न हुआ. समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री सतीश जायसवाल थे. विशिष्ट अतिथि दैनिक हरिभूमि के समाचार सम्पादक श्री ज्ञान अवस्थी, दैनिक भास्कर के वरिष्ठ उप सम्पादक श्री यशवंत गोहिल और प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष श्री कमलेश शर्मा थे. अध्यक्षता लेखक और पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री सोमनाथ यादव ने की. समारोह का ओजस्वी संचालन दूरदर्शन और आज तक के संवाददाता श्री कमल दुबे ने किया. धन्यवाद ज्ञापित न्यूज एजेंसी पी. टी. आई. के संवाददाता श्री राजेश दुआ ने किया.    

मंगलवार, 27 मार्च 2012

"जला सो अल्लाह" के लोकार्पण का समाचार दैनिक देशबंधु में प्रकाशित

मेरी किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) के लोकार्पण का समाचार दैनिक देशबंधु के बिलासपुर संस्करण में २६ मार्च को प्रकाशित हुआ. 

"जला सो अल्लाह" के लोकार्पण का समाचार दैनिक भास्कर में प्रकाशित

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) के लोकार्पण का समाचार दैनिक भास्कर के बिलासपुर संस्करण में २६ मार्च को प्रकाशित हुआ. 

"जला सो अल्लाह" के लोकार्पण का समाचार दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) का लोकार्पण समारोह रविवार, २५ मार्च को दोपहर दो बजे बिलासपुर प्रेस क्लब में संपन्न हुआ.इसका विस्तृत समाचार दैनिक हरिभूमि के बिलासपुर संस्करण में २६ मार्च को प्रकाशित हुआ.  

सोमवार, 26 मार्च 2012

किताब "जला सो अल्लाह" के लोकार्पण समारोह की रपट

बिलासपुर. "हिन्दी साहित्य में संत परम्परा और उनकी जीवनी पर केन्द्रित साहित्य का इस दौर में अभाव बना हुआ है. दिनेश ठक्कर लिखित संत जलाराम बापा पर पुस्तक "जला सो अल्लाह" (सन्त जलाराम बापा की जीवन-कथा) इस कमी को पूरी करती हुई एक कृति है". उक्त वक्तव्य रविवार, २५ मार्च को दोपहर दो बजे बिलासपुर प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार श्री सतीश जायसवाल ने "जला सो अल्लाह" के लोकार्पण समारोह के दौरान मुख्य अथिति की आसंदी से व्यक्त किये. श्री जायसवाल ने आगे कहा "श्री दिनेश ठक्कर ने चार दशकों की पत्रकारिता के बाद साहित्य के क्षेत्र में कदम रखा है". लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री सोमनाथ यादव ने इस अवसर पर कहा "संतों की जीवनी का व्यक्ति के मानस पर गहरा असर पड़ता है. उन्होंने स्वयं सौराष्ट्र की यात्रा के दौरान संत जलाराम बापा की जन्म और कर्म स्थली वीरपुर में जाकर दर्शन लाभ लिया है". समारोह में दैनिक भास्कर के उप सम्पादक श्री यशवंत गोहिल ने संत जलाराम की सेवा भावना का उल्लेख करते हुए कहा "उनका दाम्पत्य जीवन दीन दुखियों की की सेवा में सदैव समर्पित था. बापा संत महात्माओं की सेवा में सदैव आगे रहते थे". उन्होंने जलाराम बापा द्वारा भगवान् श्री राम स्वरुप एक महात्मा को अपनी धर्म पत्नी वीर बाई के दान का प्रसंग भी उल्लेखित किया. वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष श्री ज्ञान अवस्थी ने भी कहा "संत साहित्य का प्रकाशन समाज को एक नयी दिशा देता है. श्री ठक्कर की कृति इसका एक जीवंत उदाहरण है.' इसके पहले बापा पब्लिकेशन से प्रकाशित श्री ठक्कर की पहली पुस्तक "जला सो अल्लाह" का विधिवत लोकार्पण श्री सतीश जायसवाल के करकमलों से हुआ. श्री ठक्कर ने स्वयं अपनी पुस्तक के प्रमुख अंशों का पठन किया. श्री ठक्कर ने जलाराम बापा के जीवन दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा "बापा ने दरिद्र नारायण की सेवा को ही प्रभु भक्ति माना और अपना सम्पूर्ण जीवन इसी सेवा भावना को समर्पित कर दिया. खुद भूखे रहकर दूसरों का पेट भरना उनका प्रमुख सिद्धांत था. वे रोटी में राम के दर्शन करवाते थे". लोकार्पण समारोह में प्रेस क्लब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष कमलेश शर्मा, निर्मल मानिक, सुब्रत पाल, राजीव दुआ, मनोज राय, रितेश शर्मा, सुनील शर्मा, दिलीप जगवानी, श्रीचंद मखीजा, मनोज सिंह ठाकुर, मोहन सोनी, पवन सोनी, जितेन्द्र रात्रे, जितेन्द्र ठाकुर, द्विवेंदु सरकार सहित समाचार पत्र और साहित्य जगत के अनेक लोग उपस्थित थे. समारोह का ओजस्वी संचालन वरिष्ठ पत्रकार कमल दुबे और आभार प्रदर्शन राजेश दुआ ने किया.                   

गुरुवार, 22 मार्च 2012

किताब "जला सो अल्लाह" का लोकार्पण नवरात्रि में

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) का लोकार्पण चैत्र नवरात्रि के दौरान होना है. इस किताब को मैंने अपनी मातुश्री स्व. श्रीमती सरस्वती बेन और पिताश्री स्व. श्री केशवलाल ठक्कर को समर्पित किया है. आप सभी शुभचिन्तक मित्रों के उत्साहवर्धन स्वरुप यह किताब बापा पब्लिकेशन, बिलासपुर से प्रकाशित हुई है.    

सोमवार, 19 मार्च 2012

किताब "जला सो अल्लाह" का प्राक्कथन

"राम नाम में लीन हैं, देखत सबमें राम, ताके पद वंदन करूँ, जय जय श्री जलाराम" यह पंक्ति संत शिरोमणि श्रद्धेय जलाराम बापा के जीवन-दर्शन को गागर में सागर के सदृश्य रूपायित करती है. गृहस्थ आश्रम में रह कर भी जलाराम बापा ने सांसारिक मोह माया से परे हट कर सेवा और भक्ति को अपने जीवन का मूल मन्त्र बनाया था. अपनी सेवाभावी धर्मपत्नी वीर बाई के सहयोग से इन्होंने 
सदाव्रत-अन्नदान सेवा कार्य के जरिये सामाजिक जीवन का प्रेरणादायी मार्ग प्रशस्त किया था.   
जलाराम बापा ने दरिद्र नारायण की सेवा को ही वास्तविक प्रभु भक्ति मान कर अपना समस्त जीवन समर्पित कर दिया था. दीन दुखियों और भिक्षुओं की सेवा उनकी पहली प्राथमिकता में शुमार था. "खुद भूखे रह कर, दूसरों का पेट भरना" जलाराम बापा का प्रमुख सिद्धांत था. घर आये अथितियों में उन्हें प्रभु श्रीराम की झलक मिलती थी. भिक्षु, साधु-सन्यासी, यात्री सहित सभी आगंतुक अतिथियों को वे रोटी में राम के दर्शन करवाते थे. इनके आँगन में आया श्रद्धालु व्यक्ति सार्थक जीवन दर्शन आत्मसात कर लौटता था.
जलाराम बापा अपनी प्रशंसा और निंदा से कभी भी आत्म मुग्ध अथवा विचलित नहीं होते थे. धर्म-आख्यान और प्रवचन करने के बजाय वे जरूरतमंदों की सेवा को ही अपना प्रमुख लक्ष्य और कर्तव्य समझते थे. समय समय पर ईश्वर ने भी जलाराम बापा की गहन कसौटी ली, जिसमें वे पूरी तरह खरे उतरे. श्रद्धालु और अनुयायी जलाराम बापा को सेवक संत के रूप में ईश्वर का अवतार मानते थे. सच्चे मन से जलाराम बापा के स्मरण मात्र से ही लोगों के दुःख दर्द दूर हो जाते थे. इनके स्नेहमयी स्पर्श और आशीर्वाद से प्रत्येक जीव में नवजीवन का संचार हो जाता था. सहृदयपूर्वक जलाराम बापा के नाम से मानी गई मन्नत फलीभूत होने में कोई संदेह नहीं रहता. उनके चमत्कार जनहित के पर्याय रहे हैं. आज भी यही स्थिति यथावत है. जलाराम बापा के प्रति अनुयायियों की आस्था और श्रद्धा को समय का चक्र भी प्रभावित नहीं कर सका है. इनके अनुयायी देश ही नहीं वरन पूरी दुनिया में हैं.                

रविवार, 18 मार्च 2012

जलाराम ने सबको है तारा

मेरी पहली किताब
"जला सो अल्लाह" से

वीरपुर है भक्तों का प्यारा 
जलाराम ने सबको है तारा 
सेवा में बीता जीवन सारा 
संतों में स्थान है न्यारा 

रघुवंश का अनूठा अवतारा 
माता का जला दुलारा 
सदाव्रत का दिया है नारा 
दुखियों का है तारणहारा 

भूखे को माना प्राणों से प्यारा 
भक्तों को कष्टों से है उबारा 
मन से जिसने भी पुकारा 
उसकी भक्ति को है स्वीकारा 

प्रभु राम का है सेवक प्यारा 
भेदभाव से किये किनारा 
संकट में सभी को देते सहारा 
जलाराम को पूजे जग सारा 

-दिनेश ठक्कर "बापा"

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

"जला सो अल्लाह" पर उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) का लोकार्पण समारोह बिलासपुर में इस चैत्र नवरात्रि के दौरान आयोजित करना तय हुआ है. इसके पहले ही देश-विदेश से प्राप्त उत्साहंवर्धन प्रतिक्रियाओं और आप सभी प्रबुद्ध ब्लाग पाठकों द्वारा हौसला अफजाई किये जाने के लिए धन्यवाद. इस किताब के प्रकाशक "बापा पब्लिकेशन" का नाम और लोगो भी मेरे लिए सौभाग्यशाली रहा.  

गुरुवार, 15 मार्च 2012

जीने की नई राह दिखाती है किताब "जला सो अल्लाह"

मेरी पहली किताब "जला सो अल्लाह" (संत जलाराम बापा की जीवन-कथा) छप कर आ गई है. इसके प्रकाशक बापा पब्लिकेशन, बिलासपुर हैं. इसका लोकार्पण समारोह बिलासपुर में इस चैत्र नवरात्रि के दरम्यान करने की योजना है. इस किताब में गुजरात के पूजनीय अवतारी संत जलाराम बापा के सेवा भावी जीवन पर आधारित चालीस प्रेरणादायी कथाएं हैं, जो जीने की नयी राह दिखाती हैं. ये सभी कथाएं सर्वप्रथम मैंने अपने ब्लॉग "बापा की बगिया" में लिखी, जो फेसबुक पर भी लिंक की हुई हैं. आप सभी मित्रों-पाठकों से मिले बेहतर प्रतिसाद से प्रेरित होकर मैंने इन कथाओं को किताब का स्वरुप दिया है.       

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

रहस्य के आवरण में रूद्र-शिव की प्रतिमा - (३)

साधारणतः शिव मंदिर पूर्वाभिमुख रहता है, लेकिन जेठानी मंदिर  दक्षिणामुखी है, जो कि अशुभ देवताओं के साथ संलग्न होता है. वैसे जेठानी मंदिर के वास्तु शिल्प को नए सिरे से आंकलित करने के बाद ही यह निश्चित हो पायेगा कि प्रतिमा किस मंदिर की है. बहरहाल, खुदाई के द्वितीय चरण में इस प्रतिमा के खंडित हिस्से जैसे हाथ के नाखून, ऊपर का सर्प, एवं पैर के पास का सर्प मिला है, जिसे एरलडाईट आदि से जोड़ दिया गया है. रसायन विशेषज्ञों के एक दल ने इस मूर्ति का परीक्षण कर उसमें आवश्यक संरक्षात्मक रसायन लगाए हैं. तालागांव की महत्ता को देखते हुए अब इस प्रतिमा को इस स्थान पर सुरक्षित रखने का प्रबंध जरूरी हो गया है. (समाप्त)

-दिनेश ठक्कर
(पत्रिका धर्मयुग, मुंबई के २५ सितम्बर १९८८ के अंक में प्रकाशित)                       

रहस्य के आवरण में रूद्र-शिव की प्रतिमा - (२)

नामकरण की असमर्थता : जहाँ तक प्रतिमा के प्रमाणिक नामकरण का सवाल है, तो इस मसले पर स्वयं पुरातत्व अधिकारियों ने असमर्थता जाहिर की है. केवल अनुमान के आधार पर इस प्रतिमा का नामकरण कर दिया गया है. उत्खनन निर्देशक के.के. चक्रवर्ती ने प्रतिमा का तादात्म्य शिव के रूद्र स्वरुप से स्थापित करते हुए लकुलीश मत के साथ संबद्ध होने की संभावना व्यक्त की है. हावर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. प्रमोद चन्द्र ने भी इसे रूद्र शिव की प्रतिमा होने का आंकलन किया है. कुछ पुरातत्वविदों ने इसे पशुपति की मूर्ति बताया है. परन्तु इसमें भी विरोधाभास है. धर्मशास्त्रों के अनुसार, पशुओं को भी जीवात्मा के रूप में मानते हैं, जबकि पति को परमात्मा कहा गया है. पशुपति की मूर्ति में इसका मिलन है. पशुपति की मूर्ति में पशु साथ में दिखते हैं, न कि शरीर पर उत्कीर्ण रहते हैं. लेकिन तालागांव की इस चर्चित प्रतिमा में पशु शरीर पर दिखाए गए हैं. सम सामयिक प्रामाणिक जानकारी अनुपलब्ध होने से इस मूर्ति का रहस्य अनावृत्त नहीं हो पा रहा है. साधारणतः शिव के सौम्य भाव वाली मूर्तियाँ पाई जाती हैं, परन्तु रौद्र भाव की प्रतिमाएं बहुत ही कम मिली हैं. राज्य के विभिन्न स्थलों में अब तक गजारी, त्रिपुरांतर, काल भैरव, बटुक भैरव, उन्मत्त भैरव, वीरभद्र, कंकाल एवं अघोर जैसी रौद्र स्वरुप वाली मूर्तियाँ मिल चुकी हैं. लेकिन तालागांव में में प्राप्त मूर्ति का रौद्र स्वरुप अति विकट है. इसके समकक्ष की अन्य कोई प्रतिमा भी अब तक कहीं नहीं मिली है. प्रतिमा के अंग-प्रत्यंग भयावह होने के साथ साथ रौद्रता को भी उजागर करते हैं. यों शिव को भूतेश भी कहा गया है. अतः प्रतिमा पर फन फैलाए नाग सर्प तथा शरीर पर अंकित गण का होना स्वाभाविक है. इस प्रतिमा को देख कर स्पष्ट होता है कि शिव के चरित्र में संहारमूलक और सृजनमूलक व्यवहार का एक साथ संजोग है. आकार प्रकार की दृष्टि से भी यह प्रतिमा निराली है. यद्दपि करीब १४ फुट ऊँची एक विशाल मूर्ति विदिशा के पास नदी के अन्दर से मिल चुकी है, लेकिन वह यक्ष प्रतिमा है.
शास्त्र के आधार पर निर्मित : तालागांव में मिली प्रतिमा के पुरातात्विक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि इसके निर्माण में केवल उर्वरा कल्पना शक्ति का ही सहारा नहीं लिया गया है, बल्कि मूर्तिकार द्वारा किसी शास्त्र को ध्यान में रखते हुए मूर्ति बनाई गई है. साथ ही इसके द्वारा स्वयं के शिल्प कौशल का बखूबी इस्तेमाल किया गया है. अनुमान है कि उस समय आसपास तांत्रिक साधना का जोर रहा होगा, जिससे प्रेरित होकर मूर्तिकार ने उपासना के लिए सौम्य रूप के बजाय रौद्र रूप वाली प्रतिमा तराशी होगी. यह प्रतिमा तालागांव के देवरानी मंदिर की है अथवा जेठानी मंदिर की, यह प्रश्न भी अनुत्तरित है. प्रतिमा की स्थिति और उसके सुरक्षित रखे जाने की पूर्व  हालत को मद्देनजर रखते हुए पुरातत्व अधिकारी यह बता पाने में सक्षम नहीं हैं कि प्रतिमा किस मंदिर में प्रतिष्ठित और पूजित रही होगी. उत्खनन निर्देशक के अनुसार, आम तौर पर मूर्ति मंदिर के पास ही रखी जाती है. यद्दपि इस आकार की कोई दूसरी मूर्ति देवरानी मंदिर में नहीं मिली है, पर जेठानी मंदिर में ज्यादा मिली है. हालांकि रूद्र रूप शिव के गण देवरानी मंदिर की खुदाई में मिले हैं, परन्तु प्राप्त प्रतिमा इस मंदिर की मुख्य मूर्ति नहीं हो सकती है. (जारी)                     

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

रहस्य के आवरण में रूद्र-शिव की प्रतिमा

(दिनेश ठक्कर)
ताला गाँव वर्तमान में अपने विशिष्ट मूर्ति शिल्प के कारण न केवल देश में बल्कि पूरे विश्व में विख्यात हो चुका है. बिलासपुर से तीस किलोमीटर दूर स्थित पुरातात्विक स्थल पर जनवरी, १९८८ के दूसरे पखवाड़े में एक अद्वितीय उर्धरेतन प्रस्तर प्रतिमा खुदाई के दौरान प्राप्त हुई है. यह देवरानी मंदिर के मुख्य द्वार के समीप सोपान की दीवार से तीन फुट दूर, ६ फुट की गहराई में मिली. लगभग १५०० वर्ष पुरानी यह प्रतिमा ९ फुट एवं ५ टन वजनी है. शिव के रौद्र रूप को दर्शाने वाली यह प्रतिमा विलक्षण और द्वैत व्यंजना से परिपूर्ण है, जो विश्व मूर्ति कला के इतिहास में भी अनूठी है.
पुरातत्व विभाग के पूर्व संचालक के.के. चक्रवर्ती के उत्खनन निर्देशन में स्थानीय पुरातत्व अधिकारी जी. एल. रायकवार एवं राहुल कुमार सिंह द्वारा देवरानी मंदिर के बाह्य भाग में ईट की बंधान देकर क्षेतिजीय खनन करवाया गया था. ११ जनवरी १९८८ से इस मंदिर के तीन तरफ ट्रेंच लेकर खुदाई शुरू की गई थी. खुदाई के दौरान प्राप्त प्रतिमा दक्षिण पूर्व की दिशा में मुंह के बल लेटी हुई थी. लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से चैन पुली की मदद लेकर इसे बाहर निकाल कर मंदिर के समीप खडा कर दिया गया है.
उल्लेखनीय है लेमेटा स्टोन (फर्शी पत्थर) से निर्मित इस प्रतिमा के अंग प्रत्यंग जलचर, नभचर और थलचर प्राणियों जैसे बने हैं. प्रतिमा के शिरो भाग पर पगड़ीनुमा सर्प सज्जित प्रभामंडल है, जबकि कान मयूराकृति के हैं. आँखें दानव आकार की हैं. भौंह तथा नाक छिपकिली सी बनी है. मूंछ मछली से बनाई गई है, तो ठुड्डी केकड़े से. प्रतिमा की भुजाओं हेतु मगर का चयन किया गया है. हाथ के नख सर्पाकार हैं. वक्ष स्थल पर दानव मुख उत्कीर्ण है. उदर के लिए मूर्तिकार ने गण-मुख का प्रयोग किया है. उर्ध्वाकार लिंग कच्छप मुख के सदृश्य है. जंघाओं पर चार सौम्य भाव वाली मुखाकृति भी बनाई गई है.
पुरातत्व विभाग द्वारा इस प्रतिमा का काल निर्धारण मुख्यतः मूर्ति शिल्प और केश सज्जा को दृष्टिगत रखते हुए किया गया है. यह प्रतिमा गुप्त काल के तुरंत बाद की है, अर्थात छठवीं सदी के शुरूआत की. इस प्रतिमा में गुप्तकालीन शिल्प कला का प्रभाव ज्यादा प्रतीत होता है. प्रतिमा पर उत्कीर्ण केश, केश सज्जा, वेशभूषा तथा आकार-प्रकार पूरी तरह गुप्तकालीन है. (जारी)
                                              

धर्मयुग में रूद्र शिव की प्रतिमा पर आलेख

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से तीस किलोमीटर दूर स्थित ताला गाँव में देवरानी मंदिर के मुख्य द्वार के समीप वर्ष १९८८ के जनवरी माह के दूसरे पखवाड़े में खुदाई के दौरान प्राप्त रूद्र शिव की प्रतिमा पर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वप्रथम मेरी विशेष रपट पत्रिका धर्मयुग के २५ सितंबर, १९८८ के अंक में प्रकाशित हुई थी. उसकी फोटो कॉपी यहाँ प्रस्तुत है.      

ताला में रूद्र शिव की प्रतिमा के संग

रूद्र शिव की यह अद्वितीय उर्धरेतन प्रस्तर प्रतिमा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से तीस किलोमीटर दूर स्थित ताला गाँव के देवरानी मंदिर के मुख्य द्वार के समीप  वर्ष १९८८ में जनवरी के दूसरे पखवाड़े में खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी. करीब १५०० वर्ष पुरानी यह प्रतिमा ९ फुट ऊंची है.  शिव के रौद्र रूप को दर्शाने वाली यह प्रतिमा विलक्षण और द्वैत व्यंजना से परिपूर्ण है, जो विश्व मूर्तिकला के इतिहास में भी अनूठी है. फर्शी पत्थर से निर्मित इस प्रतिमा के अंग-प्रत्यंग जलचर, नभचर और थलचर प्राणियों जैसे बने हैं. इस प्रतिमा में गुप्तकालीन शिल्प कला का प्रभाव ज्यादा प्रतीत होता है. फरवरी, १९८८ में प्रतिमा का अवलोकन करते हुए मेरे साथ वरिष्ठ पत्रकार मित्र प्राण चड्डा, नथमल शर्मा और सीतेश द्विवेदी.