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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

मल्हार की डिड़िन दाई : शक्ति की पुरवाई

मल्हार, यानी छत्तीसगढ़ का एक ऐसा स्थल, जिसके सीने में छिपे हुए हैं कई प्रागैतिहासिक और पुरातात्विक रहस्य ! बिलासपुर से 32 कि.मी. दूर स्थित यह गांव पुरा संपदाओं के कारण विश्वविख्यात है। इसका राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहास गौरवशाली है। कुछ पुरा विशेषज्ञों के मुताबिक यह ईसा पूर्व चौथी सदी का नगर है। जबकि ईसा पूर्व द्वितीय सदी की विष्णु प्रतिमा से साबित होता है कि मल्हार शुरू में वैष्णवी इलाका रहा है। सागर विश्वविद्यालय की पुरातत्व इकाई द्वारा पूर्व में कराये गये उत्खनन से प्राप्त पुरा अवशेषों से पता चलता है कि मौर्य काल से तेरहवीं शताब्दी तक मल्हार उन्नत नगर के रूप में विकसित होता रहा। 
तांत्रिक अनुष्ठान के मामले में मल्हार का नाम आगे रहा है। यों तो मल्हार स्कंध माता, उमा महेश्वर, लक्ष्मी, पार्वती, वैष्णवी, सरस्वती, दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी, कंकाली, यक्षी, गंगा- जमुना तथा तारा देवी की अनूठी प्रतिमाओं के कारण देश प्रसिद्ध है। लेकिन डिडऩेश्वरी देवी की बेजोड़ प्रतिमा की वजह से यह विश्वविख्यात हो गया है। 
ग्रामीणजन इस देवी को डिडिऩ दाई के नाम से जानते हैं। छत्तीसगढ़ अंचल में जो महिला पति से विलग रहती है उसे डिडिऩ कहा जाता है। खास बात यह है कि डिडिऩ दाई मंदिर में महिलाएं बिना सिर ढंके जाती हैं। प्रतिमा पर सिंदूर भी नहीं लगाती हैं। छत्तीसगढ़ी महिलाओं में यह धारणा बलवती है कि डिडिऩ दाई मंदिर में पुत्र कामना से अनुष्ठान करने पर इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
मनीषियों में डिडिऩ दाई के दैवीय स्वरूप पर मतभिन्नता की स्थिति कायम है। कुछ लोगों का दावा है कि डिडऩेश्वरी दुर्गा (महामाया) का ही एक रूप हैं। जबकि कुछ इन्हें शिवजी द्वारा परित्यक्ता सती बताते हैं। बौद्ध अनुयायियों ने इन्हें बुद्ध की पत्नी यशोधरा निरूपित किया है। यह भी कहा जाता है कि निषादों ने अभ्यर्थना और मनोकामनावश मल्हार में इस प्रतिमा को प्रतिस्थापित किया था। निषाद डड़वा की संज्ञा से अभिहित होने से अपभ्रंश डिडऩ हो गया। इसलिए निषादों की आराध्य देवी का नाम डिडऩेश्वरी पड़ा। हालांकि जनश्रुति के मुताबिक डिडऩेश्वरी कलचुरी शासकों की कुलदेवी है। इसे राजा वेणु की इष्टदेवी भी बताया गया है।
गांव की पूर्व दिशा में स्थित इस मंदिर में प्रतिस्थापित प्रतिमा के फलक पर नौ देवियां उत्कीर्ण हैं। पौराणिक प्रसंग के मुताबिक, जब देवगुण युद्ध में असुरों से हार गये थे तब वे पार्वती की शरण में आये। इससे वे पद्मासन में तपोमुद्रा में बैठ गयी। फिर उनकी शक्ति से प्रकट नौ देवियों ने असुरों का नाश किया।
डिडऩेश्वरी प्रतिमा कलचुरि काल की श्रेष्ठ कलाकृति मानी गयी है। इसका काल निर्धारण ईसवी ग्यारहवीं शताब्दी माना गया है। काले ग्रेनाइट पत्थर से तराशी गयी यह प्रतिमा चार फुट ऊंची है। इस पर यदि किसी कड़ी चीज से आघात  किया जाये तो धातु के सदृश्य आवाज सुनाई देती है। शिल्प की दृष्टि से ये प्रतिमा विश्व में अतुलनीय हैं।
ऊंची चौकी में प्रतिस्थापित डिडऩेश्वरी प्रतिमा के शिरोभाग में चक्राकार प्रभामंडल उत्कीर्ण किया गया है। चंद्रमुकुट कलचुरि काल की शिल्प- खासियत प्रदर्शित करता है। छत्र को घंटिकाओं से अलंकृत किया गया है। त्रिलड़ी मुक्ताहार, भुजबंध कंगन और कर्ण- आभूषण में शिल्प की बारीकियां देखने को मिलती है। कमरबंध, पायजेब के अलावा घुटनों तथा तलवे में किया गया अलंकरण प्रतिमा को दर्शनीय बनाता है। पार्श्वचारिका, युगल, मृदंग वादिका, नर्तकी और सिंह मुखाकृतियां कला- पक्ष को पुख्ता करती हैं।
डिडऩेश्वरी देवी मंदिर मूल मंदिर नहीं हैं। इसकी नींव पर केंवट समाज ने नया मंदिर बनवाया है। इसे सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किये जाने के बावजूद देखभाल में काफी लापरवाही बरती गयी है। इसी का नतीजा था कि यहां से मूर्ति चुराने के लिए तीन बार असफल प्रयास किये गये। चौथी बार चोर अपने इरादे में सफल हो गये थे। हालांकि बाद में आश्चर्यजनक रूप से यह प्रतिमा बरामद कर ली गयी। गांव वाले इसे दैवी चमत्कार मानते हैं।
दोबारा प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भव्य रूप से हुई। नवरात्रि में विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे। मनोकामना ज्योति कलश सैकड़ों की संख्या में रखे जाने लगे। तांत्रिक साधना में भी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ स्थानीय तंत्र साधकों का दावा है कि यहां रात को पायल और घुंघरूओं की खनक सुनाई देती है। तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त कुछ बुजुर्ग अभी भी दाई की भभूति से असाध्य रोगों का इलाज करते हैं। इन सब विशिष्टताओं के कारण मल्हार की डिडिऩ दाई को शक्ति की पुरवाई कहा जाने लगा है।
- दिनेश ठक्कर 
(16 अक्टूबर 1993 को पत्रिका धर्मयुग, मुंबई के शक्ति अंक में प्रकाशित)

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

यादें : "धर्मयुग" में मल्हार की डिड़िन दाई पर आलेख

















द टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की लोकप्रिय रही पत्रिका "धर्मयुग" (मुंबई) का शक्ति अंक १६ अक्टूबर १९९३ को प्रकाशित हुआ था, उसमें मल्हार  के डिड़नेश्वरी देवी-मंदिर पर आधारित मेरे आलेख को भी शामिल किया गया था। यह अंक धरोहर और स्मृति स्वरूप आज भी मेरे संग्रह में सुरक्षित रखा है। उस वक्त श्री विश्वनाथ सचदेव, धर्मयुग के संपादक थे। इस शक्ति अंक के मुख पृष्ठ और मेरे आलेख की छाया प्रति सुधि पाठक मित्रों के लिए सादर प्रस्तुत है। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला मुख्यालय से ३२ कि.मी. दूर स्थित ग्राम मल्हार अपने प्रागैतिहासिक- पुरातात्विक महत्व और संपदाओं के कारण विख्यात है।                        

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

कच्छ के "माता ना मढ़" की देवी आशापुरा


कच्छ के सीमावर्ती ग्राम "माता ना मढ़" स्थित देश देवी आशापुरा की जय हो
ॐ  ऐं ह्रीं श्रीं कलीं आशापुरायनमः  

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

शरणम् सोमनाथ महादेवं



सौराष्ट्रदेशे वसुधावकाशे ज्योतिर्मयं चंद्रकलावतंसम।
भक्तिप्रदानाय कृतावतारम तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।

आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव


यत्र गंगा च यमुना च।
यत्र प्राची सरस्वती।
यत्र सोमेश्वरो देवः।
तत्र माममृतं कृधि।
इन्द्रायेन्दो परिस्त्रव।
(ऋग्वेद खिलसूक्त)       

रविवार, 7 अप्रैल 2013

हनुमान जी जीवन प्रबंधन के गुरू हैं- पं. मेहता

जीवन के हर क्षेत्र में स्थितियों और समस्याओं से कैसे निपटा जाए ,हनुमान जी का चरित्र हमें यह सिखाता है। वे श्रीराम के परम भक्त हैं। हनुमान जी जीवन प्रबंधन के गुरू हैं। जब हम हनुमान जी को अपने जीवन में उतारते हैं तो हम भी भक्त होने लगते हैं और भौतिक समस्याओं के निराकरण में भक्त की अपनी विशिष्ट शैली होती है। यह विचार शनिवार की शाम को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के श्याम मंदिर भवन में  जीवन प्रबंधन गुरु पं विजय शंकर मेहता ने बातचीत के दौरान व्यक्त किए। 
पं मेहता ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि आज के समय में हर कार्य को संक्षेप , शीघ्रता और दक्ष होकर करने की उम्मीद  की जाती है।  गोस्वामी तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा नामक ऐसा ही  सक्षिप्त साहित्य लिखा है जिसका पाठ 3 से 5 मिनट में पूरा हो जाता है। हनुमान चालीसा के माध्यम से ध्यान करने पर जीवन अलग ही दिव्य रूप ले लेता है। हनुमान चालीसा की प्रत्येक पंक्ति में जीवन की हर समस्या का समाधान निहित है। ऐसा इसलिए है कि इसके हर शब्द में हनुमानजी स्वयं अवतरित हुए हैं। हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की परेशानी , अशांति और असफलता दूर हो जाती है। 
हनुमानजी का जीवन प्रबंधन से क्या वास्ता है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि हनुमानजी का जीवन चरित्र ,उनका हर काम नियोजित रहता था। आज के दौर में व्यक्ति के जीवन में हनुमानजी का जीवन चरित्र आगे बढ़ने में बेहद सहायक है। उन्होंने कहा कि मनुष्य किसी भी क्षेत्र का हो उसे ज्ञान, कर्म और उपासना के मार्ग पर चलने से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी। 
"हमारे हनुमान" और "एक शाम हनुमान के नाम" जैसे अपने आध्यात्मिक कार्यक्रमों  के राजनीतिकरण के सवाल पर उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आरोप बेबुनियाद है। आयोजक किसी भी वर्ग या पार्टी विशेष का हो ,यह मायने नहीं रखता। हम तो उसी घाट पर जाते हैं जहाँ शेर और बकरी दोनों पानी पीने  आते हैं। मेरा प्रयास रहता है कि आध्यात्मिक कार्यक्रमों  के जरिए शांति स्थापित हो।पाकिस्तान में भी मैंने अपने आख्यान में मजहब को जिस्मानी और रूहानी तौर पर अलग-अलग उपयोग के साथ समझाया था। हनुमानजी और ध्यान  के उदहारण के साथ उन्होंने बताया कि बिना ख्यालात के सांस लेने पर अपने इष्ट से रूहानी जुडाव संभव है। वैज्ञानिकों द्वारा गॉड पार्टिकल्स की खोज के सम्बन्ध में उन्होंने बताया कि धर्म और आध्यात्म अनुभूति का मामला है जबकि विज्ञानं प्रमाण मांगता है। सभी धर्मों में अपने अपने इष्ट की प्रार्थना का चलन है और प्रार्थना ही ईश्वर से मिलाने का एकमात्र माध्यम है। वैज्ञानिक  इसी प्रार्थना से ईश्वर के अंश तलाश करने की जुगत में हैं। फिल्मों और टीवी सीरियल में हनुमानजी के किरदार को न्याय की कसौटी पर तौलते हुए उन्होंने कहा कि निर्देशक तो थोड़ी-बहुत छूट ले सकता है लेकिन हनुमानजी के जीवन चरित्र के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। 
पत्रकार वार्ता के बाद रात नौ बजे तक गुजराती समाज भवन टिकरापारा में पं मेहता ने अपने आख्यान में हनुमानजी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए जीवन प्रबंधन के गुर बताए। उल्लेखनीय है कि पं मेहता की मौजूदगी में रामनवमीं ( 19 अप्रैल) की संध्या 7 से 8 बजे की बीच रायपुर के पुलिस ग्राउंड में श्रीहनुमानचालीसा के सवा करोड़ जप का महायोजन राज्य स्तर पर एक ही समय में  किया जाएगा जिसका प्रसारण  आस्था चैनल के जरिए होगा।  इस बार पं मेहता के महापाठ  का विषय राष्ट्रीयता का बोध होगा  जिसमें धर्म और नैतिकता को अपनाने और भ्रष्टाचार तथा अपराध को नकारने पर जोर दिया जाएगा।
-दिनेश ठक्कर
(दैनिक भास्कर भूमि, राजनांदगांव में प्रकाशित)