आस्था का बढ़ा विनाशी भ्रमण
हथेली पर लिए चले प्राण
स्वार्थों का बढ़ा अतिक्रमण
खुद खाई खोदने का लिया प्रण
मानव की बढ़ी बेहद मनमानी
तिजारती इमारतें उसने तानी
देवभूमि की महत्ता न जानी
प्रकृति ने सबक सिखाने ठानी
अंबर को भी गुजरा यह नागवार
आँखें तरेरता आक्रोशित अंबर
चेतावनी की बूंदों का हुआ न असर
फटे आफत के बादल गरजदार
आया मौत का जल जोरदार
गिरी आस्था की निष्ठुर चट्टानें
धंसी मोक्ष की जिन्दगी रूलाने
मलबे में दबी काया लगी झांकने
मुसीबतों का पहाड़ लगा सताने
केदारनाथ बचे धाम हुआ अनाथ
शिवमूर्ति को गंगा ले गई साथ
बौराई मंदाकिनी का बना रौद्र पथ
काल की धारा में बहे सब खाली हाथ
अपनों की आँखों से बहती अश्रु गंगा
रिश्तों के दर्द का उफान कम न होगा
संबंधों की देह का इन्तजार रहेगा
भोले शंकर पर भरोसा कम न होगा
सिकेंगी अब भावनाओं की रोटी
सुनाई जाएगी परस्पर खरी-खोटी
नोंच खाएंगे बदनीयत बोटी-बोटी
राहत आपस में ही जाएगी बांटी
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(फोटो उत्तराखंड-फेसबुक से साभार)
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