अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

मुगालता

जिंदगी गुजर गई बापा
हमेशा मुगालते में रहा
सफ़ेद लिबास ओढ़े थे
किंतु मन काला ही रहा

ऊंचाई पर तो पहुंचा बापा
किंतु क़द बना रहा बौना
हमेशा की बड़ी बड़ी बातें
और सोच बनी रही छोटी

ताउम्र उछलता रहा बापा
और खुद को छलता रहा
पांव जमीं पर न रख सका
आसमां छूने का भरम रहा

जिंदगी स्वार्थ से बिताई बापा
ईमान की बंदगी न कर सका
गैरों का कंधा इस्तेमाल किया
आख़री वक्त कोई कंधा न दिया

-दिनेश ठक्कर "बापा"

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

अपेक्षित हैं अच्छे दिन

माली को है पूरा यकीन
मेहनत न जाएगी बेकार
हरा भरा होगा गुलज़ार
अपेक्षित हैं अच्छे दिन
 
पतझड़ बीते आएगी बहार
बदलेगा नजारा इस बार
हर शाख अब होगी हरियर
फूल खिलेंगे हर गुलशन

हरियाली होगी मनभावन
खुशबू फैलाएंगे हर सुमन
भौंरों का होगा अब गुंजन
परिंदों का होगा ये चमन

विफल होगा कुल्हाड़ी वार
दरख़्तों पर न होगा प्रहार
जड़ें मजबूत हैं अबकी बार
ये हौंसला रहेगा बरकरार
अपेक्षित हैं अच्छे दिन ?

- दिनेश ठक्कर "बापा"


शनिवार, 12 अप्रैल 2014

कागद कारे

जिंदगी के कैनवास में
सिमट गई है सूरत
उभर गई है रेखाओं में
वक्त से जूझती मूरत
स्वार्थ की दीर्घा में
नहीं है इंसान की कीमत
अगर हौंसला रहे दिल में
परेशानियां हो जाएंगी पस्त
ताकत है कलम कूची में
लगेंगे कागद कारे भी मस्त

- दिनेश ठक्कर "बापा"