जिंदगी गुजर गई बापा
हमेशा मुगालते में रहा
सफ़ेद लिबास ओढ़े थे
किंतु मन काला ही रहा
ऊंचाई पर तो पहुंचा बापा
किंतु क़द बना रहा बौना
हमेशा की बड़ी बड़ी बातें
और सोच बनी रही छोटी
ताउम्र उछलता रहा बापा
और खुद को छलता रहा
पांव जमीं पर न रख सका
आसमां छूने का भरम रहा
जिंदगी स्वार्थ से बिताई बापा
ईमान की बंदगी न कर सका
गैरों का कंधा इस्तेमाल किया
आख़री वक्त कोई कंधा न दिया
-दिनेश ठक्कर "बापा"
हमेशा मुगालते में रहा
सफ़ेद लिबास ओढ़े थे
किंतु मन काला ही रहा
ऊंचाई पर तो पहुंचा बापा
किंतु क़द बना रहा बौना
हमेशा की बड़ी बड़ी बातें
और सोच बनी रही छोटी
ताउम्र उछलता रहा बापा
और खुद को छलता रहा
पांव जमीं पर न रख सका
आसमां छूने का भरम रहा
जिंदगी स्वार्थ से बिताई बापा
ईमान की बंदगी न कर सका
गैरों का कंधा इस्तेमाल किया
आख़री वक्त कोई कंधा न दिया
-दिनेश ठक्कर "बापा"