महानदी के तटवर्ती ग्राम ओड़काकन में आयोजित होने वाला रामनामियों का मेला और संत समागम छत्तीसगढ़ की विशिष्ट लोक संस्कृति और आस्था का प्रतिनिधित्व करता है। इसी विषय पर आधारित मेरा आलेख १७ अप्रैल १९९४ को जनसत्ता, दिल्ली के रविवारीय परिशिष्ट में प्रमुखता से शामिल किया गया था। इसकी कतरन मेरे संग्रह में सुरक्षित है। इसकी छाया प्रति सुधि पाठक मित्रों के लिये सादर प्रस्तुत है। जनसत्ता के कोलकाता संस्करण के प्रारंभ काल में उप संपादक और फिर उसके बाद मुम्बई संस्करण में अनुबंधित संवाददाता-लेखक बतौर कार्य करने का अवसर प्रधान संपादक श्रद्धेय प्रभाष जोशी के स्नेहमयी आशीर्वाद के फलस्वरूप ही मिला था। उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित है। .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें