निरंतर शोषण से मर्माहत होकर
अंतिम सांसें गिनने लगा है श्रम
दुखी होकर शोषित पसीना
सिसकने लगा छिली त्वचा पर
दिन प्रतिदिन
सभी सीमाएं लांघने लगा शोषण
और होने लगा गिद्धों का जमावड़ा
उखड़ती सांसों को समेटते हुए श्रम
हो रहा है अश्रुपूरित
होता जा रहा है समाप्त
शोषित पसीने से नमक
खून तो पहले ही चूसा जा चुका है
प्रतीक्षा कर कर रहा गिद्धों का झुंड
कि शव में कब परिवर्तित हो श्रम
ताकि बनाया जा सके अपना ग्रास
और नोंच खाएं उसका अंग प्रत्यंग
एक दिन
उधार की सांसें भी गंवा देता है श्रम
टूट पड़ते हैं गिद्ध उसकी लाश पर
और उसे अपना ग्रास बना कर
एकजुट होकर नोंच खाने के बाद
उड़ जाते हैं नए शव की तलाश में !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
अंतिम सांसें गिनने लगा है श्रम
दुखी होकर शोषित पसीना
सिसकने लगा छिली त्वचा पर
दिन प्रतिदिन
सभी सीमाएं लांघने लगा शोषण
और होने लगा गिद्धों का जमावड़ा
उखड़ती सांसों को समेटते हुए श्रम
हो रहा है अश्रुपूरित
होता जा रहा है समाप्त
शोषित पसीने से नमक
खून तो पहले ही चूसा जा चुका है
प्रतीक्षा कर कर रहा गिद्धों का झुंड
कि शव में कब परिवर्तित हो श्रम
ताकि बनाया जा सके अपना ग्रास
और नोंच खाएं उसका अंग प्रत्यंग
एक दिन
उधार की सांसें भी गंवा देता है श्रम
टूट पड़ते हैं गिद्ध उसकी लाश पर
और उसे अपना ग्रास बना कर
एकजुट होकर नोंच खाने के बाद
उड़ जाते हैं नए शव की तलाश में !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें