मरते नहीं हैं कभी
प्रेमचंद
जीवित रहते हैं सदा
प्रेमचंद
सच्चे शब्दार्थों में
निःस्वार्थ कलम में
उत्पीड़ित देह में
शोषित पात्रों में
आक्रांत बस्तियों में
सतत जागृत रखना हैं
शब्द साधकों को
प्रेमचंद
अपने सार्थक सृजन में
बोध कराना है अक्षरों में
प्रेमचंद
होने के अपने सही मायने
अभिव्यक्ति की अनुभूति
शब्दों की व्यंजना
अक्षरों का अंकन
वाक्यों का विन्यास
रचना की सार्थकता
होगी सफल जब कभी
हम झांकेंगे अपने भीतर
ह्रदय से होंगे एकाकार
प्रेमचंद की आत्मा से
तब पुनः दिखेंगे सृजन में
प्रेमचंद
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
प्रेमचंद
जीवित रहते हैं सदा
प्रेमचंद
सच्चे शब्दार्थों में
निःस्वार्थ कलम में
उत्पीड़ित देह में
शोषित पात्रों में
आक्रांत बस्तियों में
सतत जागृत रखना हैं
शब्द साधकों को
प्रेमचंद
अपने सार्थक सृजन में
बोध कराना है अक्षरों में
प्रेमचंद
होने के अपने सही मायने
अभिव्यक्ति की अनुभूति
शब्दों की व्यंजना
अक्षरों का अंकन
वाक्यों का विन्यास
रचना की सार्थकता
होगी सफल जब कभी
हम झांकेंगे अपने भीतर
ह्रदय से होंगे एकाकार
प्रेमचंद की आत्मा से
तब पुनः दिखेंगे सृजन में
प्रेमचंद
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
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