उनके संग आया सुरों का रेला
पीछे छोड़ गए वे यादों का मेला
ऊपर वाले ने ये कैसा खेल खेला
आए थे वे जमीं पर खुद रोते हुए
चले गए वे जग को हंसाते हुए
जीवन की उलझन छिपाते हुए
गीत जीवंत वे कर गए गाते हुए
याद आते तो गाती है हर धड़कन
ह्रदय को होता सुरों पर अभिमान
सुन कर स्वस्थ हो जाता तन मन
रगों में प्रवाहित होती सुरीली तान
खिलंदड़ चेहरे ने दर्द खूब छिपाए
हाथ की लकीरों ने कई भेद दबाए
अनकही दास्तां भी साथ छोड़ गए
विधि के विधान को कौन पढ़ पाए
आंसुओं से सींचा खुशी का तराना
सुन कर उसे खुश होता है जमाना
महफिल में झूम उठता है दीवाना
गीतों में चाहता हर कोई खो जाना
कह रहे हैं सिसकते हर साज
तेरे बिना जीना दुश्वार है आज
उखड़ी उखड़ी सी सांसें सुरों की
तान थम सी गई है तरानों की
सरगम की उदास बगिया में
सुगंध नहीं मिलती है फूलों में
भौंरों ने छोड़ दिया है मंडराना
कलियों को न भाता है खिलना
कहीं दूर गगन की छांव में
यादों के साज की संगत में
गा रहे हैं वे अकेले अकेले
सुन रहे हैं चांद तारे अलबेले
उस आभासी गगन के तले
न गम मिले न आंसू निकले
उन्हें अब प्यार प्यार ही मिले
सूरज की पहली किरण मिले !
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
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