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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

गंगा होने का अर्थ

मैं थक गई हूँ पाप धोते धोते  
यही तो कर रही हूँ सदियों से
फिर भी बढ़ता जा रहा है पाप
छाले पड़ गए हैं अब हाथों में

मैं क्यों भोगूँ पापियों की सजा
मैं क्यों मैली रहूँ उसके मैल से
मेरी देह क्यों की जा रही दूषित
पवित्रता क्यों हो रही है प्रदूषित

अवरूद्ध हो गए मेरे मोक्ष के मार्ग
मैं भी अब जाना चाहती हूँ स्वर्ग
मुझे मालूम है गंगा होने का अर्थ
मैं बहना चाहती हूँ होकर समर्थ

मैं बनना चाहती हूँ निर्मल नदी
दोनों किनारों की बाजुएँ
और अपना वक्ष
स्वच्छ शक्तिशाली बना कर
मुक्ति चाहती हूँ जमे हुए मैल से
मुझे मालूम है पापी प्रपंच करेंगे
पानी पिए हुए हैं वे घाट घाट का
देखना चाहती हूँ अपने घाट पर
वह डुबकी जो पाप से विमुक्त हो
ज्ञात होते हुए भी कि पापी बढ़ेंगे
मैं बनना चाहती हूँ निर्मल नदी

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र मेरे व श्रीमती प्रीति ठक्कर द्वारा)
   
     


   


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