तीखा अधिक
मीठा कम बोलते हैं वे
लम्बी है इनकी जीभ
मिर्ची ज्यादा खाते हैं वे
करीबी मित्र को भी पसंद है
मिर्ची ज्यादा खाना
चाहे वह हरी हो या लाल
स्वाद बढ़ाने में हैं माहिर वे
चौंकते थे पहले इनके अपने
मिर्ची ज्यादा खाते देख कर
किंतु अब आदत सी हो गई है
स्वयं के सफल सेवक जो हैं वे
फिलहाल इनकी आंखें लाल हैं
यदा कदा टपकने लगे हैं आंसू
जीभ में भी छाले पड़ गए हैं
डर रहे हैं अब मिर्ची खाने से वे
आशंकित भी हैं मीठा बोलने से
आसपास चीटियां न उमड़ पड़े
सहमे हैं हमारी सेहत से
सफलता के साथी व्यथित हैं
असफलता की शुरूआत देख कर
शुभचिंतक भी बेहद चिंतित हैं
मुंह की खाई हालत देख कर
धीमे स्वर में उनसे पूछते हैं वे
क्या हुआ ?
टका सा जवाब मिलता है
मिर्ची लग गई है !
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र गूगल से साभार)
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