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बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

मुट्ठी में आकाश

आकाश भी आ गया है अब
मेरी मुट्ठी में
धरती नहीं खिसकेगी अब
मेरे पैरों के नीचे से

हवा का रूख बदल गया अब
नैय्या नहीं डूबेगी मंझधार में
तूफानों से हो गई दोस्ती अब
मंजिल मिलेगी आसानी से

भरोसा रखने वालों देखना अब  
पानी निकलेगा रेगिस्तान में
समंदर की सतह में नहीं अब
मोती मिलेंगे निर्धन आंखों से

झुग्गियों में अंधेरा न होगा अब
जुगनू रौशनी देंगे पूरी बस्ती में
समृद्धि का दीपक जलेगा अब
आपके अपने तेल बाती से

मेरे हिस्से की धूप मिलेगी अब
सूरज भी संग खेलेगा आंगन में
परछाई भी साथ न छोड़ेगी अब
अहंकार न होगा ऊंचे हुए कद से

शह मात के सियासी खेल में अब
विश्वास बढ़ा है सीधी चाल में
प्रगति की हर बाजी जीतेंगे अब
दबे कुचले हुए प्यादों की चाल से  

भ्रष्टाचार की गंदगी न फैलेगी अब
आपकी हमारी स्वच्छ क्यारी में
बेईमानी का कचरा साफ होगा अब
ईमानदारी की हमारी बुहारी से

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
   (चित्र गूगल से साभार)
 


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