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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

अब तो हल्ला बोल

तुम अन्याय के खिलाफ
खड़े होते क्यों नहीं
हल्ला बोलते क्यों नहीं
भुखमरी, शोषण के विरुद्ध
आवाज उठाते क्यों नहीं
आखिर कब तक दुबके रहोगे
आँखें कब खुलेंगी सोए जमीर की ?

कड़वा सच है यह
सब देख, सुन, जान, सह कर भी
मौन रहने वाला
होता है मुर्दे की मानिंद
इसलिए समय रहते
जमीर के साथ स्वयं को भी जगाओ
अपने अधिकार, कर्तव्य को समझो
आवाज दबाने वालों से सतर्क रहो
उनका मुखौटा उतारना होगा
हल्ला बोलने और हल्ला मचाने वालों में
अंतर समझना होगा
पहचान जरूरी है अपने और परायों की
वक्त का तकाजा है इस विषम स्थितिं में
अब तो हल्ला बोल !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

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