
पढ़ाई के बाद कोई काम मिला नहीं
तो कलम थाम ली
मालूम था इतना आसान नहीं
दुर्दिन को कलमना
रखना था स्याही से सरोकार
अंदेशा भी था स्याह होने का
सामने लाना था शब्दों से सच
खतरा था सुर्खियां बनने का
सुधारना था समाज वाक्यों से
जानता था असामाजिक होना
कठिन था सामाजिक व्याकरण
संबल मिला सच्ची पंक्तियों से
गलत व्यक्ति का सही चेहरा
मुखौटे से उसे अनावृत्त करना
प्रलोभन संग व्यक्तिगत होना
यह कार्य है बड़ा जोखिम भरा
आदमी को इंसान बनाना
आसान नहीं है इतना
रगों में इंसानियत का रक्त
चाहता है यह विषम वक्त
शक्ति की अस्मत लुट जाना
निःशक्त का घर उजड़ जाना

दुखद है कलम का कुंद होना
अभिव्यक्ति पर आघात बढ़ना
फिर भी कलम मुखर रखना
जान हथेली पर लेकर
लिखना होगा निडर होकर
-दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें