बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक-अभिनेता ६९ वर्षीय सुनील मुखर्जी "दादा" का निधन मंगलवार, २९ नवम्बर, २०११ को हो गया. वे कुछ दिनों से बीमार थे. इनका अंतिम संस्कार बुधवार, ३० नवम्बर को दोपहर १२ बजे सरकंडा, बिलासपुर स्थित मुक्तिधाम में किया गया. सुनील दादा के पुत्र सिद्धार्थ ने मुखाग्नि दी. इनकी एक पुत्री भी है. स्टेट बैंक आफ इंडिया के पूर्व कर्मी सुनील दादा को रंग कर्मी होने का गर्व था. बिलासपुर में नाट्य गतिविधियों को बढ़ावा देने में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही. रंग शिविर के जरिये नए कलाकारों को परिमार्जित कर उन्हें सार्थक मंच प्रदान किया था. इस क्रम में बिलासपुर के पूर्व मेयर राजेश पाण्डेय, दीपक ठाकुर, राम माधव गुप्ता, राजेश मिश्रा, दिलीप मुखर्जी, असगर अली, राजेश दुबे आदि के अभिनय को सुनील दादा ने अपने निर्देशन कौशल से संवारा था. फुरसत के पलों में इनका पसंदीदा स्थान गोलबाजार था. दोपहर के वक़्त वे रज्जन पाण्डेय के रेस्टोरेंट "पाण्डेय स्वीट्स" में बैठकर अपने मित्रों से यादें ताजा किया करते थे. इनमें मैं स्वयं, पत्रकार सरजू मिश्रा, सतीश जायसवाल, पूर्व सहकर्मी मुरारी पस्तोर, मिश्राजी, रज्जन पाण्डेय , राजेश पाण्डेय आदि प्रमुख हैं. भोपाल के शारदा जी, माताचरण मिश्र के भी वे करीबी थे.
मुझे सुनील दादा का पड़ोसी होने का सौभाग्य बचपन में मिला था. तब वे जगमल ब्लाक में रहते थे. इसी मुहल्ले के गणेश और सरस्वती पूजा उत्सव से उन्होंने अपनी शौकिया रंग यात्रा शुरू की थी. बाद में वे पड़ोस के मुहल्ले दयालबंद में रहने चले गए थे. अंतिम समय वे अरपा पार कालोनी सोंगंगा में निवासरत थे. मालूम हो २० दिसंबर १९४१ को जन्मे सुनील दादा ने बिलासपुर के रंग परिदृश्य को नव आयाम दिया था.उन्होंने ३० से ज्यादा नाटकों का सफल मंचन किया था. जिसमें डाक्टर धर्मवीर भारती के "अंधायुग"के अलावा सिहासन खाली है, भस्मासुर अभी ज़िंदा है, गवर्नमेंट इन्स्पेक्टर, रानी नागफनी की कहानी, इतिहास चक्र, अखाड़े के नगाड़े आदि उल्लेखनीय हैं. सुनील दादा ने १९५८ में पहली बार बड़े मंच पर नाटक "और इंसान बदल गया" में अभिनय किया था. यह नाटक उनके बड़े भाई राजकुमार अनिल ( ग्वालियर ) के निर्देशन में बिलासपुर के छेदीलाल सभा भवन में खेला गया था. सुनील दादा का निर्देशक बतौर पहला नाटक "फिंगर प्रिंट" ( १९६४ ) था. सुनील दादा को नाट्य क्षेत्र में में कई पुरस्कार मिले थे. बिलासपुर में राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव शुरू कराने में इनकी महती भूमिका थी. दादा को मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि ...
मुझे सुनील दादा का पड़ोसी होने का सौभाग्य बचपन में मिला था. तब वे जगमल ब्लाक में रहते थे. इसी मुहल्ले के गणेश और सरस्वती पूजा उत्सव से उन्होंने अपनी शौकिया रंग यात्रा शुरू की थी. बाद में वे पड़ोस के मुहल्ले दयालबंद में रहने चले गए थे. अंतिम समय वे अरपा पार कालोनी सोंगंगा में निवासरत थे. मालूम हो २० दिसंबर १९४१ को जन्मे सुनील दादा ने बिलासपुर के रंग परिदृश्य को नव आयाम दिया था.उन्होंने ३० से ज्यादा नाटकों का सफल मंचन किया था. जिसमें डाक्टर धर्मवीर भारती के "अंधायुग"के अलावा सिहासन खाली है, भस्मासुर अभी ज़िंदा है, गवर्नमेंट इन्स्पेक्टर, रानी नागफनी की कहानी, इतिहास चक्र, अखाड़े के नगाड़े आदि उल्लेखनीय हैं. सुनील दादा ने १९५८ में पहली बार बड़े मंच पर नाटक "और इंसान बदल गया" में अभिनय किया था. यह नाटक उनके बड़े भाई राजकुमार अनिल ( ग्वालियर ) के निर्देशन में बिलासपुर के छेदीलाल सभा भवन में खेला गया था. सुनील दादा का निर्देशक बतौर पहला नाटक "फिंगर प्रिंट" ( १९६४ ) था. सुनील दादा को नाट्य क्षेत्र में में कई पुरस्कार मिले थे. बिलासपुर में राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव शुरू कराने में इनकी महती भूमिका थी. दादा को मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि ...
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