
वरिष्ठ लेखक और बीआई टीवी के अधिकारी कमलेश पाण्डेय का मानना है "आज के हीरो का का फ़िल्मी जीवन चंद बरसों का होता है. लेकिन देव आनंद के पचास वर्ष भी कम लगते हैं. उनका जादू अब भी कायम है. इंडस्ट्री में देव आनंद की तरह आदमकद लोग नहीं रहे. केवल छः फुट की उंचाई होने से वह आदमकद नहीं हो सकता. वह देव आनंद की उंचाई कभी नहीं पा सकता. देव साहब ने दरअसल एक नया स्कूल शुरू किया है. दिलीप कुमार, राजकपूर और देव साहब ने दर्शकों की जरूरतें अलग अलग ढंग से पूरी की हैं. दिलीप कुमार ने कुंठाएं, भावनाएं और असफल प्रेम की अभिव्यक्ति युवा पीढी को परोसी है. राजकपूर ने सामाजिक और आर्थिक परिवेश में अभिनय को अभिव्यक्ति दी. जबकि देव साहब ने अभिनय को अलग मोड़ दिया. चाल, ढाल, सबका अंदाज मस्ती भरा था. फिर भी वह हिन्दुस्तानी था. देव साहब, दिलीप कुमार और राजकपूर के बीच की आवश्यकता बन गए थे. वही व्यक्तितत्व आगे चल कर शम्मी कपूर के रूप में निखर कर सामने आया. शम्मी कपूर ने उसे अंतिम उंचाई तक पहुंचाया. हालांकि देव साहब ने अपने आपको एक ढाँचे में सीमित कर लिया है. उनकी शैली पूरी तरह विकसित नहीं हो सकी. उनके मशहूर होने में शैली एक जंजीर बन गई. इसके बावजूद देव आनंद सदाबहार हैं."
निर्देशक रमेश सिप्पी ने कहा- "देव साहब शुरू से उर्जावान रहे हैं. वे दिलचस्प और प्यारे हीरो हैं. उस जमाने में उन पर जिस तरह लड़कियां मरती थी, आज ऐसे हीरो कम ही हैं. उनका काम अनुशासित होता है. दिलीप कुमार और राज कपूर की तरह वे भी इंडस्ट्री के सशक्त स्तम्भ हैं. भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता." ( दिनेश ठक्कर )
( जनसत्ता, मुंबई में २८ जुलाई १९९५ को प्रकाशित )
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