देव आनंद सदाबहार अभिनेता के पर्याय हो गए हैं. सत्तर वसंत देख लेने के बाद भी उनके जीवन पर पतझड़ कभी हावी न हो सका है. बहारों ने हमेशा फूल बरसायें हैं. राह में कभी कभार आये कांटें खुद-बा खुद फूल बन गए. उनकी अदाएं अब भी जवान हैं. मानो वृद्धावस्था ने स्वयं पर विराम लगा दिया हो. न केवल मन से बल्कि तन से भी वे आज तरोताजा हैं. उम्र की ढलान पर भी उनके फुर्तीले कदम बहके नहीं हैं. उनमें आज भी पहले जैसा दमखम है. जवान दिलों की धड़कन देव आनंद ने १९ जुलाई १९९५ को अपने अभिनय यात्रा के पचास साल के पड़ाव कामयाबी के साथ पूरे कर लिए हैं. अपने जीवन की आधी सदी उन्होंने फिल्म जगत को समर्पित कर दी है. वे इस मायानगरी में मील के पत्थर साबित हुए हैं. बालीवुड के लिए वे दन्त कथा बन चुके हैं, यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. सी.आई.डी ., काला पानी, हम दोनों, हम नौजवान, ज्वेल थीफ, तेरे घर के सामने, मंजिल, जानी मेरा नाम, हरे राम हरे कृष्ण, लूटमार, देश परदेस समेत उनकी यादगार फिल्मों की लम्बी फेहरिस्त है, जिसमें देव आनंद ने एक नयी शैली पेश की. एक नया अंदाज दिया फिल्म इंडस्ट्रीज को. गाइड जैसी फिल्म में जहां उन्होंने गंभीर भूमिका सहजता के साथ निभाई, वहीं उन्होंने अन्य फिल्मों में रोमांटिक हीरो की छवि को विशिष्ट तरीके से पेश किया. अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के दौर वाले इस अभिनेता ने भी अलग इमेज बनाई जो आज तक बरकरार है. दिलीप कुमार ट्रेजडी किंग रहे हैं तो देव आनंद ने मस्त मौला रोमांस किंग बतौर अपना अलहदा स्थान बनाया. राजकपूर ने सामाजिक परिदृश्य में नायकत्व का झंडा फहराए रखा तो देव आनंद ने मस्त मौला नायक का ध्वज खुशनुमा परिवेश में लहराया. उनमें उमंग की बयार सदा ही प्रवाहित रही.
खासकर युवा पीढी ने देव आनंद की भूमिकाओं में अपनी असल जिन्दगी के अक्स देखे. उनमें अपनी भावनाओं का प्रतिबिम्ब देखा. इनके चाल, ढाल, बाल, वेशभूषा, बोलने का अंदाज न सिर्फ कई दर्शकों ने अपनाया बल्कि इंडस्ट्री के नवोदित नायकों ने भी आत्मसात कर उनकी नक़ल की. कईयों के लिए उनका अभिनय आदर्श बन गया है. शक्ल और अक्ल से नक़ल करने का क्रम आज भी जारी है. देव आनंद के कैरियर की गोल्डन जुबली से जितना आन्दित उनका दर्शक वर्ग है, उतना बालीवुड भी है. "जनसत्ता" से बातचीत में फिल्म जगत की हस्तियों की आम राय थी देव आनद के ये पचास साल स्वर्णिम हैं. इन पर समूचे फिल्म जगत को गौरव है. फिल्म "गैंगस्टर" और "रिटर्न आफ ज्वेल थीफ" से भी लोगों को उम्मीद है उसमें देव आनंद का पुराना अंदाज हावी रहेगा.
देव आनंद के भाई और अभिनेता-निर्देशक विजय आनंद का मानना है "देव आनंद पर हम सबको नाज होना चाहिए. वे एक बेहतर फिल्मकार अभिनेता तो हैं साथ ही एक अच्छे व्यक्ति के गुण भी हैं उनमें. उनकी सोच परिपक्व है. उनमें सदा ही सकारात्मक सोच पाई है. वे हर भूमिका में अपने आप को तह तक ले जाते हैं. तब वे देव आनंद न होकर एक पात्र हो जाते हैं. "गाइड" में उनका अभिनय बेमिसाल था. लम्बे अरसे तक वह पात्र उनसे संलग्न रहा. बाकी की फिल्मों में भी कहीं भी दोयम दर्जे के नहीं रहे. उनमें श्रेष्ठतम होने की ललक हमेशा कायम रही. उनके निर्देशन और निर्माण का तरीका दूसरे लोगों से हमेशा अलग रहा. इसके बावजूद तनाव उन पर हावी न सका. चाहे सेट पर हो या घर पर, मुस्कान उनकी खासियत रही है."
देव आनंद की नायिका रह चुकी स्वप्न सुन्दरी हेमामालिनी की बेबाक बयानी है "देव साहब परदे और परदे के बाहर हीरो ही रहे है.उनका रोमांटिक अंदाज निराला है. उनके साथ काम करते हुए पता ही नहीं लगता किसी फिल्म में अभिनय कर रहे हैं. फिल्म "जानी मेरा नाम" इसका एक उदाहरण है. अपने साथी कलाकारों की वे जिस तरह हौसला अफजाई करते हैं वह तारीफ़ के काबिल है. जूनियर आर्टिस्ट से लेकर स्पोट बॉय भी उनसे खुश रहता है. सबको सम्मान देने की भावना रहती है." फिल्म "हरे राम हरे कृष्ण" में नायिका रह चुकी जीनत की भी यही राय थी. वे कहती हैं "उनके साथ काम करने का रोमांच ही कुछ अलग है. फिल्म कब पूरी हो जाती है पता ही नहीं लगता. सब कुछ आसान तरीके से होता है. उनके व्यवहार से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है. वे हर किसी की तरक्की चाहते हैं." ( जारी .... )
( जनसत्ता, मुंबई में २८ जुलाई १९९५ को प्रकाशित )
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