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रविवार, 10 मई 2015

मां कभी साथ नहीं छोड़ती

मां कभी साथ नहीं छोड़ती
दिल दिमाग से दूर नहीं होती
संतान के संग वह सदैव रहती
सजीव साक्षात हो या स्वप्न
कुदरत की है वह निराली देन
संबंधों की नाल सदा सुदृढ़ रहती
गर्भनाल पोषण का जरिया बनती
अंश की उपस्थिति दोनों में रहती
ममत्व के संग रिश्ता जोड़े रखती
कोशिकाओं का होता आदान प्रदान
शरीर में बना रहता मां का अंशदान
मां के आगे झुका चिकित्सा विज्ञान



मां नहीं है मात्र  एक शब्द और देह
ईश्वर का है इंसानी रूप यह
समाहित है उसमे समूची सृष्टि
ब्रम्हांड में दिव्य है उसकी दृष्टि
प्राण की परवाह किए बगैर वह
ममत्व को जन्म देती
जान बचाने जान देने से न डरती  
त्याग की अनूठी मिसाल बनती
हर आफत में वह ढाल बन जाती
मां के स्पर्श दुलार में ऊर्जा रहती
नवजात की थमी सांसें लौट आती
दर्द में वह स्वयं भी दवा बन जाती
परवरिश में रात दिन एक कर देती  

मां की गोद देती है स्वर्गिक आनंद
लोरी, थपकी सुलाती चैन की नींद
भूख शांत कराती खुद भूखे रह कर
पोषित करती है अपने गम खाकर
चिड़ियों की मानिंद दाना चुगाती
सिंहनी की तरह सुरक्षित रखती
आंसू पोछती है अपने आंसू पीकर
अनकहे बोल को भी समझ जाती
अनपढ़ होकर भी पाठशाला होती
शक्ति संपन्न बनाने जरिया बनती
कदम लड़खड़ाते ही वह थाम लेती
अशक्त होते हुए भी चलना सिखाती
अंधेरे को चीर कर राह रोशन करती
जमीन पर पकड़ बनाना सिखाती
आकाश को मुट्ठी में लेना सिखाती
जिंदगी की धूप में छांव बन जाती
परछाई साथ छोड़ भी देती
परन्तु मां कभी साथ नहीं छोड़ती !

@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
 


       




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