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बुधवार, 20 मई 2015

हर रास्ता रेशम सा नहीं होता

लम्बी दीवार को लांघ कर
चल पड़े हो जिस रास्ते पर
वह रेशम सा है
यह विश्वास छलावा मात्र है
जाल में खुद फंसने जैसा है
यह मालूम होते हुए भी कि
कूटनीति के दुर्गम रास्ते पर
भूमिगत खतरे बिछे हुए हैं
तय समय और स्थान पर
दोस्ती का कदम रखते ही
द्वेष का विस्फोट हो सकता है
भरोसे के परखच्चे उड़ सकते हैं
बनाई गई छवि बिगड़ सकती है
अपनाई गई कारोबारी सोच पर
चोरी छिपे डंडी मारी जा सकती है
औपचारिक करार की मंजिल पर
चाल अव्यवहारिक हो सकती है

अतीत का स्व इतिहास भूला देना
भविष्य हेतु गैर इतिहास देखना
वर्तमान पर भारी पड़ सकता है
मूर्ति की नब्ज पर उंगली रखना
सजीवता की सांसें रोक सकती है
दूसरों की धरोहर को सराहा जाना
अपनों की धरोहर में आंसू लाना है
पराई विरासत से रिश्ता जोड़ना  
अपनी विरासत की अवहेलना है  


कूटनीति के दुर्गम रास्ते पर चलना
और राह में फूलों की चाह बेमानी है
विस्तारवादी कांटों का चुभते रहना
और पांवों को दोष देना ठीक नहीं है
संदेह के साए के साथ सफर करना
फिर धूप पर दोषारोपण सही नहीं है
संबंधों की बुनियादी सूरत बदलना
फिर सिर पर बैठाना खतरनाक है
रास्ते का पारम्परिक पत्थर पूजना
फिर उसे देवता बना देना दुखदायी है
हर पत्थर मील का पत्थर नहीं होता  
हर रास्ता रेशम सा नहीं होता
 
@ दिनेश ठक्कर "बापा"
(चित्र : गूगल से साभार)
   
 


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