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गुरुवार, 3 मार्च 2016

मध्यम वर्ग की दुर्दशा

सत्ताधारियों की बदनीयत से
मध्यम वर्ग की नियति है 
त्रिशंकु बने रहने की
अर्थ रक्त पिपासु टोपीबाजों का
आसान शिकार बन गया है
अशक्त निहत्था मध्यम वर्ग
टैक्स महंगाई का बोझ ढोते ढोते
टूट गई है कमर उसकी
अब वह न घर का रहा न घाट का

सत्ता के भूखे सेंक लेते हैं अपनी रोटी
उसके गरम तवे पर
बैठते ही कुर्सी पर
निर्ममता से फेर देते हैं पानी
उसके चूल्हे और उम्मीदों पर
चला देते हैं सरकारी कैंची
उसकी जुबाँ और जेब पर
विकास के नाम पर करने भरपाई
भ्रामक जुमलों से देकर दुहाई
छीन ली जाती जोड़ी हुई पाई पाई
फिर गृहस्थी की दरकी दीवार पर
कील में टँगी रह जाती है
राहत और सुख चैन की अपेक्षाएं

मध्यम वर्ग पर मार चौतरफा है
महंगाई का दुरूह मार्ग पार करने
अर्थव्यवस्था के अंधे खूनी मोड़ पर
छोड़ दिया जाता उसे बेबस अकेला
प्रावधानों और कटौती के अवरोधक
धीमी कर देते हैं गति जीवन यात्रा की
यदि वह गंतव्य तक पहुँच गया
तो अपनी पीठ थपथपा लेते हैं सत्ताधारी
अन्यथा उसके सिर फोड़ देते हैं ठीकरा

मध्यम वर्ग की दुर्दशा है
कि उसकी सुनने वाला कोई नहीं
सियासी दांवपेंच में फंस गया है वह
सत्ताधारियों से निरंतर होती उपेक्षाओं से
लोकतंत्र के हाशिए में चला गया है वह
कड़वे अनुभव से हो रही है समाप्त
उसके गृहस्थ जीवन की मिठास

मध्यम वर्ग की विसंगति है
कि उसका बुढ़ापा आने पर
लग गई है नजर शातिर गिद्धों की
उसके भविष्य की निधि पर
उसके ताउम्र बचत के निवाले पर
तैयारी है झुण्ड में झपट कर नोंच खाने की
फिर यही गिद्ध आम चुनाव के वक्त
शांति के कबूतर बन कर
चुगेंगे दाना उसकी मंझोली मुँडेर पर
पेट भर जाने पर
बहुमत मिल जाने पर
उड़ जाएंगे ये कुनबे के साथ
और
आशियाना बना लेंगे
ऊँची आलीशान मुंडेर पर !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

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