अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

गुरुवार, 10 मार्च 2016

वतन की खातिर बोल सको तो बोलो

गुस्से से लाल हैं वतन के दुश्मन
दहशतगर्द आकाओं की मौत पर
जिंदा हैं अब भी उनकी हैवानियत
इसे बेख़ौफ़ मिटा सको तो बोलो

मुल्क का बहुत गरम है माहौल
बगावती जुबां उगल रही है आग
झुलस रहा है अवाम का अमन चैन
इस आग को बुझा सको तो बोलो

सच बोलने से तकलीफ तो होगी
इसके बावजूद बोल सको तो बोलो
वे लोग आमादा हैं जुबां काटने पर
अपना मुंह खोल सकते हो तो बोलो

दुश्मनों के कई हैं कच्चे झूठे चिट्ठे
इसे सच्चाई से खोल सको तो बोलो
उनके चाहने से बदलेगी नहीं हकीकत
भीतरी आवाज सुन सकते हो तो बोलो

यहां हैं जितने गुस्से से हुए लाल मुंह
उतनी हो रही हैं इन दिनों दोगली बातें
सच्चाई बयां करता मेरा मुंह बंद करा कर
सिर उठा कर सच बोल सकते हो तो बोलो

चौतरफा मचा हुआ है यहां कुतर्कों का शोर
गद्दारों की इस भीड़ में खुद को बुलंद कर
तर्कों के साथ आवाज उठा सको तो बोलो
दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे सको तो बोलो

खरीद फ़रोख्त के इस सियासी बाजार में
हर कोई चाहता बोलना फायदे मुताबिक़
नफा नुकसान की सोच से ऊपर उठ कर
वतन की खातिर बोल सकते हो तो बोलो !

@ दिनेश ठक्कर बापा  
(चित्र गूगल से साभार)




 
 
 


कोई टिप्पणी नहीं: