कुर्सी के भूखे आपस में जुट गए
स्वार्थ का चूल्हा जलाने के लिए
गिले शिकवे भूल गले मिल गए
दुश्मनी छोड़ कर हाथ मिला लिए
आग लगाने हथकंडे अपना लिए
देशद्रोह की कुल्हाड़ी हाथों में लिए
भविष्य का हरा पेड़ काटने लग गए
आजादी का चमन उजाड़ने लग गए
बली बनाने लगे बकरा बलि के लिए
आग लगाई तवा गरम करने के लिए
बदली में लाल सूरज की राह देखने लगे
धुंध में भी धूप की उम्मीद करने लगे
काली घटाओं से सूरज जब बाहर आया
परछाई में कद लम्बा देख भ्रम हो गया
खुद को खलनायक से नायक बना पाया
तिरंगा लेकर देशभक्ति का नारा लगाया
बोलवचनों से आम आदमी को भरमाया
सियासी जमीं में नियोजित कदम बढ़ाया
चुनावी फसल काटने हेतु हंसिया उठाया
कुर्सी की भूख मिटाने ईंधन अन्न जुटाया

स्वार्थ के चूल्हे में अब भड़क उठी है आग
चूल्हे के लिए जुबां भी उगलने लगी आग
तवा गरम है सेंक लो रोटी
बलि के बकरे की खा लो बोटी बोटी
कुर्सी की भूख मिटा लो तोंद है मोटी
लोकतंत्र की तंग गलियां हैं बहुत छोटी
ज्यादा नहीं चल पाओगे तुम चालें खोटी
हिसाब चुकता करेगी मेरे देश की माटी !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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