आता है
हर बार
फिर
बीत जाता है
यूं ही
छीन लेता है
पुरानी तारीखें
और
दे जाता है
नई तारीखें
भूख मिटाने के लिए
नया साल
आते ही
धनी छतों पर
रोशनी बढ़ जाती है
पिछली तारीखें भी
यहां जश्न मनाती हैं
नया कैलेण्डर भी
पुराने कैलेण्डर संग
हमप्याला हो जाता है
और
नई तारीखें
सिखा देती हैं
शोषण के नए तरीके
नया साल
आते ही
हमेशा की तरह
निर्धन छतों पर
अंधेरा गहरा जाता है

पुराने जख्मों पर
नई तारीखें
नमक छिड़क देती है
पुराने कैलेण्डर की मानिंद
नया कैलेण्डर भी
भूख प्यास की मियाद
और बढ़ा देता है
बेबस आंखों में
बेरहम समय
छलकते रहता है
आंसू बन कर
साल भर !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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