
देश और समाज के कंटकों, दुश्मनों,
आतंकियों को शक्तिशााली बनानेे वाले
उनको अपना मोहरा बनाने वाले
स्वार्थ के लिए उनकी सहायता करने वाले
उनकी दुर्गति और मौत का मातम मनाने वाले
असल में हैं वे आस्तीन के सांप
वे डंसते हैं
देश और समाज की एकता, अखंडता, सौहार्द को
वे लगातार उगलते हैं
जहर अलगाव और आतंक का
वे महसूस करने लगे हैं
कि, वे हो गए हैं महा विषधर
बढ़ गई है उनकी महत्वाकांक्षा
बौरा गया है तन-मन झूठा सम्मान पाकर
अब वे होना चाहते हैं सर्वत्र पूजित
स्वार्थी आकाओं के गले का हार बन कर
वे चाहते हैं अमृत पीना
अपने भीतर का विष उगल कर
वे चाहते हैं समृद्ध होना
कृत्रिम जन आस्था से लिपट कर
लेकिन यह सब उनका मुगालता है
सच तो यह है

सियासी सपेरों के कब्जे में होंगे
तब तोड़ दिए जाएंगे
निर्ममता से उनके विषैले दांत
वे कैद कर दिए जाएंगे
गुलामी के पिटारे में
वे बना दिए जाएंगे
पालतू जीव जन प्रदर्शन के
तब वे केवल
स्वार्थ की बीन के आगे
फन उठा कर
फूंफकार कर
अपना सर्प-धर्म निभाएंगे
और
अपने स्वार्थी आकाओं की भूख मिटाएंगे !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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