अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

सोमवार, 30 नवंबर 2015

जुबाँ पर लगाओ लगाम


जुमलों की चिकनी चुपड़ी
सड़क पर
बेकाबू होकर भागती
जुबाँ पर लगाओ लगाम
उसे रखो काबू में
तलुओ में ठोंको नाल
लोकतंत्र के सफर में
निर्जीव न समझो
रास्ते के पत्थरों को
जब वे उछले
तब चोट लगी गहरी
बिगड़ गया चाल चेहरा
हालत हालात यह है
जो जुबाँ
भागा करती थी सरपट
वो अब
रेंग रही है हांफते हुए
बंद हो गई है बोलती
जो जुबाँ
उगला करती थी आग
उस पर
अब फिर गया है पानी !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार )

कोई टिप्पणी नहीं: