उछलकूद मचा रही हैं लहरें
सूर्योदय के समय समंदर पर
सर्द हवा के झोंके
टकरा रहे हैं आँखों में
नम कर रही हैं नज़रों को
किनारों से मिलने बेताब लहरें
यदि पलकें खोलें
तो भिगो देती हैं
समंदर की बेसब्र सी बूँदें
मुझे चैन से रहने दो
अपने पथरीले किनारों पर
सपने देखती आँखों पर
जागृत सूर्य किरणें रख दो
उछलकूद मचाती यह लहरें
मुझे कहीं असहिष्णु न कर दे !
@ दिनेश ठक्कर बापा
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