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बुधवार, 11 नवंबर 2015

हवा का रूख

दीप न बुझाओ
निर्धन देहरी के
देर नहीं लगती
बदलते
हवा का रूख
अंधेरा न फैलाओ
कच्ची छतों पर
समय नहीं लगता
बदलते
उजाले की दिशा।

दीपक जलाओ
मिलजुल कर
इंसानियत का
उजियारा फैलाओ
सेवा सद्भावना का
देर नहीं लगती
बदलते
हवा का रूख।

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

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