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मंगलवार, 24 नवंबर 2015

कलाम की कविता "खोज"



श्रद्धेय डा. ए. पी.जे. अब्दुल कलाम की अंतिम साँसों तक उनका कवि रूप भी प्रेरणादायी था। तमिल और अंग्रेजी में लिखी उनकी कविताएँ सोद्देश्य और संदेशपरक हैं। उनकी रचनाओं में ज्ञान, शांति, हरित क्रान्ति, खुशहाली आदि की चाहत और व्यथा भी झलकती है। रामेश्वरम स्थित डा. कलाम के परिजनों द्वारा संचालित स्मृति संग्रहालय  "हाऊस ऑफ कलाम" में उनकी चुनिंदा कविताओं के पोस्टर भी हिंदी में अनुवाद के साथ प्रदर्शित किये गए है। कविता "खोज" विशेष तौर पर ध्यान आकर्षित करती है-

मैं चढ़ते चढ़ते हाँफ रहा हूँ
कहाँ है शिखर ?
हे मेरे ईश्वर !
मैं खोद रहा हूँ जहाँ-तहाँ
ज्ञान का खजाना कहाँ है छिपा ?
हे परमपिता !
मैं दूर समंदर में खे रहा हूँ नैया
खोज रहा हूँ एक टापू
कहाँ है अमन ?
हे मेरे भगवान !
हे ईश्वर,
मेरे राष्ट्र को दो वरदान
मेहनत और ज्ञान का दान
जिससे खिल उठे खेत-खलिहान
आए हरियाली चारों ओर खुशहाली ।

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