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सोमवार, 17 अप्रैल 2017

प्यासा निर्धन वर्तमान

देहात के सूखे कुंए के पास
बाल्टी लिए बैठा था उदास
प्यासा निर्धन वर्तमान
सूख गई थी पानी की आस
 
लकवाग्रस्त पगडंडियों से
गुजरता हुआ जल वाहन
देख कर उसने रूकवाया
जल वाहक से प्रश्न किया
किसकी प्यास बुझाओगे
मैंने कौन सा गुनाह किया
मुझे पानी नहीं पिलाओगे
कह कर मूर्छित हो गया  

उसके मुंह पर पानी छिड़क
जल वाहक ने होश में लाया
जख़्मों पर नमक छिड़कते  
कहा - उठो निर्धन वर्तमान
मेरा पानी होश में ला सकता
किंतु प्यास नहीं बुझा सकता
बिकाऊ पानी खरीद न पाओगे
दाम चुकाते तुम दम तोड़ दोगे
धनी प्यासों के लिए है ये पानी
तुम्हें पुकार रहा नाले का पानी            
तुम्हारे नहीं रहे अब नदी बांध
हमारे कब्जे में है उसका पानी
जल वाहक की सुन कर बयानी
रो पड़ा प्यासा निर्धन वर्तमान

इधर
छलकते असहाय आंसू
भर रहे थे खाली बाल्टी
बेज़ार प्यासे वर्तमान की
उधर
बाजार की तरफ चल पड़ा
कारोबारी जल वाहन
छलकाते हुए बिकाऊ पानी

जल वाहन के आते ही उमड़ते
बिकाऊ पानी को खरीदने वाले
पानी का कारोबार देख शासन
नहीं होता है शर्म से पानी पानी
सूख चुका है आंखों का भी पानी !    

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

           

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