अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

मंगलवार, 14 मार्च 2017

फागुन में धुलते भी हैं रंग बदलते चेहरे

मदमस्त फागुन विचरता है जब वन में
दहक उठता सेमल और पलाश का रंग
लालिमा छा जाती झड़ते हुए जंगल में
झड़ी पत्तियों के ढेर में गिरा सेमल टेसू
पोछता नजर आता है विरह के आँसू

मतवाला मौसम लेता है जब अंगड़ाई
फागुनी रंगों से सराबोर आसमानी बूंदे
झकझोर देती है झड़ते हुए जंगल को
फैल जाती है मादकता भरी सौंधी सुगंध
इंद्रियों को मोहित कर देता इंद्रधनुषी रंग
द्रुत लय में आबद्ध हो जाता फाग का राग
जम कर थिरकने लग जाता अंग प्रत्यंग

जब रंगे तन मन को व्याकुल करती उमस
तब
प्रकृति के विधान के अनुसार आसमानी बूंदे
चुन लेती है रंग बदलने वाले सभी चेहरों को
और
धोकर अनावृत्त करती असली मुख मण्डल
दिखा देती है उनका नकली आभा मण्डल

इस सत्य से अवगत कराती आसमानी बूंदे
कि
मादकता उत्तेजना नहीं टिकती है देर तक
जैसा चढ़ता वैसा उतरता है फागुन का रंग
फागुन में धुलते भी हैं रंग बदलते हर चेहरे !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)



       
   
   
 
   

कोई टिप्पणी नहीं: