
दहक उठता सेमल और पलाश का रंग
लालिमा छा जाती झड़ते हुए जंगल में
झड़ी पत्तियों के ढेर में गिरा सेमल टेसू
पोछता नजर आता है विरह के आँसू

फागुनी रंगों से सराबोर आसमानी बूंदे
झकझोर देती है झड़ते हुए जंगल को
फैल जाती है मादकता भरी सौंधी सुगंध
इंद्रियों को मोहित कर देता इंद्रधनुषी रंग
द्रुत लय में आबद्ध हो जाता फाग का राग
जम कर थिरकने लग जाता अंग प्रत्यंग
जब रंगे तन मन को व्याकुल करती उमस

प्रकृति के विधान के अनुसार आसमानी बूंदे
चुन लेती है रंग बदलने वाले सभी चेहरों को
और
धोकर अनावृत्त करती असली मुख मण्डल
दिखा देती है उनका नकली आभा मण्डल
इस सत्य से अवगत कराती आसमानी बूंदे
कि
मादकता उत्तेजना नहीं टिकती है देर तक
जैसा चढ़ता वैसा उतरता है फागुन का रंग
फागुन में धुलते भी हैं रंग बदलते हर चेहरे !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें