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रविवार, 19 मार्च 2017

राजयोगी

एक हाथ में माला
अपने सिद्ध मनकों से
बटोर रही हैं शक्तियां
दूसरे हाथ में भाला
धारदार नुकीलेपन से
उत्पन्न कर रहा है भय
आस्था के सिर
हिल रहे हैं
पूरी सहमति के साथ
और अनास्था के हाथ
अपना सिर पीट रहे हैं  
असहमति के कारण

आस्तिक हैं आनंदित
नास्तिक हैं भयभीत
सपने दिखा रही है भक्ति
आंखें मूंदे हुए हैं भक्तगण
सपने भंग कर रही अधर्मिता
आंखें दिखा रहे हैं अधर्मीजन 

डर के मारे एकता अखण्डता   
दुबक कर बैठ गई है कोने में
निरंकुश साम्प्रदायिकता 
बौखलाए शब्दों के बाणों से
छलनी कर रही हैं
सद्भावना का सीना
फिर भी
तटस्थ हैं ध्यानस्थ योगी
मौन हैं मुखर प्रखर योगी
क्योंकि
योगी हो गए हैं राजयोगी
राजयोग भोगने के लिए
आवश्यक मानी  
तटस्थता और मौन की युति
चखना भी तो है
अपना स्वर्णिम भविष्य फल

संयोगवश नहीं बना राजयोग
गुरू की अच्छी महादशा वश
केंद्र में युति से बना राजयोग
योगी को बना दिया राजयोगी
ग्रहों की अनुकूल दृष्टि भी रही 
सुधर गई इनकी जन्म कुंडली
विरोधियों को लगी साढ़े साती
सिर से पांव तक तकलीफ देती   
जनता भविष्य के सपने देखती 

सबका साथ पाकर विकसित
महा राजयोगी और राजयोगी
साथ चल पड़े हैं नई डगर पर
साथ मिल कर कर रहे तैयार 
नए मठों के साथ नए भक्त भी    
बुन रहे हैं अब नया तानाबाना
स्व भविष्य कर रहे सुरक्षित !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
 
       





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