अपने सिद्ध मनकों से
बटोर रही हैं शक्तियां
दूसरे हाथ में भाला
धारदार नुकीलेपन से
उत्पन्न कर रहा है भय
आस्था के सिर
हिल रहे हैं
पूरी सहमति के साथ
और अनास्था के हाथ
अपना सिर पीट रहे हैं
असहमति के कारण

नास्तिक हैं भयभीत
सपने दिखा रही है भक्ति
आंखें मूंदे हुए हैं भक्तगण
सपने भंग कर रही अधर्मिता
आंखें दिखा रहे हैं अधर्मीजन
डर के मारे एकता अखण्डता

निरंकुश साम्प्रदायिकता
बौखलाए शब्दों के बाणों से
छलनी कर रही हैं
सद्भावना का सीना
फिर भी
तटस्थ हैं ध्यानस्थ योगी
मौन हैं मुखर प्रखर योगी
क्योंकि
योगी हो गए हैं राजयोगी
राजयोग भोगने के लिए
आवश्यक मानी
तटस्थता और मौन की युति
चखना भी तो है
अपना स्वर्णिम भविष्य फल
संयोगवश नहीं बना राजयोग

केंद्र में युति से बना राजयोग
योगी को बना दिया राजयोगी
ग्रहों की अनुकूल दृष्टि भी रही
सुधर गई इनकी जन्म कुंडली
विरोधियों को लगी साढ़े साती
सिर से पांव तक तकलीफ देती

सबका साथ पाकर विकसित
महा राजयोगी और राजयोगी
साथ चल पड़े हैं नई डगर पर
साथ मिल कर कर रहे तैयार
नए मठों के साथ नए भक्त भी
बुन रहे हैं अब नया तानाबाना
स्व भविष्य कर रहे सुरक्षित !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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