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गुरुवार, 9 मार्च 2017

आसान नहीं सियासी सफ़र


सियासत में मुख़ालफ़त भी खूब होगी मुकाबला जो कर सको तो करो
जुम्हूरियत की क़द्र करना बेहद ज़रुरी है जो कर सको तो करो


मज़लिस में मुख़ासमत जताने बद ज़ुबान से होती है मज़म्मत
मतानत के साथ मीठी ज़ुबान से मुबाहसा जो कर सको तो करो


अक्स न चमके इसलिए मुख़ालिफ़ तो अक्सर उछालेंगे कीचड़
मुकद्दस होकर दामन अपना अगर पाक साफ जो कर सको तो करो


सियासत के सफ़र में फूल बिछे रास्तों की उम्मीद करना बेमानी है
अपने नेक क़दमों से मुश्किल राह को आसान जो कर सको तो करो


माकूल मक़ाम तक पहुँचने की खातिर खानी पड़ती हैं कई ठोकरें
रास्ते के पत्थरों को भी तराशने का काम तुम जो कर सको तो करो


इस सियासी सफ़र में अपने भी टाँग खींचते हैं हम क़दम बन कर
ख़ुदगरज़ सँगे राह को पहचान कर दरकिनार जो कर सको तो करो


मुआरिज़ को गिरा कर हर सियासतदाँ चाहता है ख़ुद ऊपर उठना
गिरे दबे कुचले बेबसों की मदद कर उसे खड़ा जो कर सको तो करो


सिंहासन का असली हक़दार बताने की जाती है ताकत की नुमाइश
खरीदी गई जमाअत के बिना अपनों को एकजुट जो कर सको तो करो  


मोमिन का चोला पहन मुलहिद भी टेकते हैं इबादतगाहों में मत्था
मफ़लूकों की दहलीज़ पर भी सजदा कर इबादत जो कर सको तो करो


सियासी हँजार में हमेशा नहीं मिलता है आफ़ताब माहताब का उजाला
जुगनुओं की रौशनी में तुम मनचाही मँज़िल हासिल जो कर सको तो करो


सिंहासन पर कब्जा करने की जुगत में जुटा रहता है हर मुदब्बिर
अवाम के दिल पर भी हुुकूमत करने की कोशिश जो कर सको तो करो





काँटों से भरा रहता है तख़्त-ए-ताज इसका दर्द सह सको तो पहनो
मुल्क को महफ़ूज रखने की खातिर जान कुर्बान जो कर सको तो करो

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)

     
 










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