
सियासत में मुख़ालफ़त भी खूब होगी मुकाबला जो कर सको तो करो
जुम्हूरियत की क़द्र करना बेहद ज़रुरी है जो कर सको तो करो
मज़लिस में मुख़ासमत जताने बद ज़ुबान से होती है मज़म्मत
मतानत के साथ मीठी ज़ुबान से मुबाहसा जो कर सको तो करो
अक्स न चमके इसलिए मुख़ालिफ़ तो अक्सर उछालेंगे कीचड़
मुकद्दस होकर दामन अपना अगर पाक साफ जो कर सको तो करो
सियासत के सफ़र में फूल बिछे रास्तों की उम्मीद करना बेमानी है
अपने नेक क़दमों से मुश्किल राह को आसान जो कर सको तो करो
माकूल मक़ाम तक पहुँचने की खातिर खानी पड़ती हैं कई ठोकरें

इस सियासी सफ़र में अपने भी टाँग खींचते हैं हम क़दम बन कर
ख़ुदगरज़ सँगे राह को पहचान कर दरकिनार जो कर सको तो करो
मुआरिज़ को गिरा कर हर सियासतदाँ चाहता है ख़ुद ऊपर उठना
गिरे दबे कुचले बेबसों की मदद कर उसे खड़ा जो कर सको तो करो
सिंहासन का असली हक़दार बताने की जाती है ताकत की नुमाइश
खरीदी गई जमाअत के बिना अपनों को एकजुट जो कर सको तो करो
मोमिन का चोला पहन मुलहिद भी टेकते हैं इबादतगाहों में मत्था
मफ़लूकों की दहलीज़ पर भी सजदा कर इबादत जो कर सको तो करो
सियासी हँजार में हमेशा नहीं मिलता है आफ़ताब माहताब का उजाला
जुगनुओं की रौशनी में तुम मनचाही मँज़िल हासिल जो कर सको तो करो
सिंहासन पर कब्जा करने की जुगत में जुटा रहता है हर मुदब्बिर

काँटों से भरा रहता है तख़्त-ए-ताज इसका दर्द सह सको तो पहनो
मुल्क को महफ़ूज रखने की खातिर जान कुर्बान जो कर सको तो करो
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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