कुत्सित लालसावश
विभिन्न उपमाओं से
देह को अलंकृत कर
नारी का मूल सौन्दर्य
देख नहीं सकते कभी
निहारी है तुमने कभी
नारी की निर्मल प्रकृति
समझी है पवित्र प्रवृत्ति
देखे है पावन चटख रंग
अगर सोच है नकारात्मक
तो व्यर्थ है दैहिक व्याख्या
नहीं कर सकते तुम कभी
वास्तविक रूप परिभाषित
खाने सोने के उपक्रम से परे
नारी शक्ति का सच्चा सौंदर्य
देख पाओगे क्या तुम कभी ?
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
विभिन्न उपमाओं से
देह को अलंकृत कर
नारी का मूल सौन्दर्य
देख नहीं सकते कभी
निहारी है तुमने कभी
नारी की निर्मल प्रकृति
समझी है पवित्र प्रवृत्ति
देखे है पावन चटख रंग
अगर सोच है नकारात्मक
तो व्यर्थ है दैहिक व्याख्या
नहीं कर सकते तुम कभी
वास्तविक रूप परिभाषित
खाने सोने के उपक्रम से परे
नारी शक्ति का सच्चा सौंदर्य
देख पाओगे क्या तुम कभी ?
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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