
बहुमत कभी भी सर्वमत नहीं होता
मतान्तर से उपजा यह विरोधाभास
होने नहीं देता गलतियों का आभास
बहुमत पर बहुत सारे सवाल करता
यांत्रिक षडयंत्र का परिणाम बताता
विरोधाभास भी इतना अधिक होता
कि
बहुमत कभी भी सर्वमत नहीं होता
उत्पन्न हुए विरोधाभास को केवल
मतान्तर का परिणाम न माना जाए
अपेक्षाओं के अतिरेक से आंका जाए
यह आंकलन भी करना है आवश्यक
कि
उपेक्षाओं की अधिकता है आत्मघाती
जनाधार को सतह पर स्वयं ले आती
जनहित में भी है यह अति आवश्यक
बहुमत को सर्वमत भी होने दिया जाए
यह भी मतान्तर का ही है दुष्परिणाम
कि

पराजय में छल लगता अल्पमत को
जनादेश को शिरोधार्य भी नहीं करता
सर्वमत होने के आकांक्षी बहुमत को
लोकतंत्र की विजय होना नहीं मानता
सही ठहराता हैं स्वार्थ के गठबंधन को
बढ़ जाती है नकारात्मक मानसिकता
अल्पमत बढ़ाता विरोध की गांठों को
सत्ता के लालच में महागठबंधन होता
और
बहुमत कभी भी सर्वमत नहीं होता
सर्वमत होने बहुमत का कर्तव्य होता

संविधान अनुसार स्वयं भी कार्य करे
लोकतंत्र को लोकहित में मजबूत करे
सिंहासन पर सन्यासी बैठे या गृहस्थ
सरकार संचालित योगी करे या भोगी
मुखिया के हाथ में कमंडल हो या मंडल
पहने हुए वस्त्रों का रंग चाहे जैसा भी हो
जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
फर्क पड़ता जब जनता का अहित होता
असर पड़ता है जब सद्भाव समाप्त होता
मतान्तर की तरह भेदभाव भी बढ़ता
तब
बहुमत कभी भी सर्वमत नहीं होता !
@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
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