अभिव्यक्ति की अनुभूति / शब्दों की व्यंजना / अक्षरों का अंकन / वाक्यों का विन्यास / रचना की सार्थकता / होगी सफल जब कभी / हम झांकेंगे अपने भीतर

बुधवार, 22 मार्च 2017

अपने अपने सपने

ऐसा वे कहते हैं गर्व से
कि
मुक्ति मिली बुरे दिनों से
बीत चुकी है काली रात
हुआ उम्मीदों का सवेरा
अब चैन की नींद लीजिए
क्योंकि
तुम्हें देखने हैं सपने
बहुत सारे
अच्छे भले दिनों के
अगर
कोई कामकाज न हो
तो खुली आंखों से भी
देख सकते हैं दिन में
अच्छी रातों के सपने

तुम्हें देखने हैं दिन रात
छोटे बड़े ढेरों सपने
क्योंकि
वादों की जो घुट्टी तुम्हें
खूब पिलाई गई है वह
नींद की गोलियों से भी
अधिक असरकारक है
पलक झपकते ही तुम्हें
देखने मिलेंगे कई सपने
मुफ्त सैर कराई जाएगी
सपनों के देश प्रदेश में
भूला देंगे भूख प्यास भी
दिखा कर स्वर्ग के सपने

तुम्हें वे होने न देंगे कभी
सहज शांत और स्थिर
अपने वश में वे कर लेंगे
तुम्हारा दिल और दिमाग
संवेदनाएं काबू में न रहेगी
हकीकत जैसे लगेंगे सपने
नियंत्रण से परे होगी मति
तुमने भी तो दी है सहमति
कि देख सको अच्छे सपने
सबके हैं अपने अपने सपने
जैसे चाहोगे वैसे होंगे सपने
वे तो जानते हैं हर तकनीक
सपनों को पंख लगा देने की    

तुम्हें वे कभी नहीं जगाएंगे
क्योंकि
बद से बदतर हुए हालात
देख कर दुखी हो जाओगे
बढ़ती भूख प्यास के मारे
जिंदा लाश बन जाओगे
सद्भावना का रिसता रक्त
इंसानियत के बहते अश्रु
बर्दाश्त नहीं कर पाओगे
घुट घुट कर मर जाओगे
हड्डियों के जीर्ण ढाँचे में
सांसें चलती रहे इसलिए
झूठी हमदर्दी के साथ
तुम कर दिए जाओगे
लंबी गहरी नींद के सुपुर्द !

@ दिनेश ठक्कर बापा
(चित्र गूगल से साभार)
 

   




 

कोई टिप्पणी नहीं: