
चिमनी और सोखक
उलझ रहे हैं आपस में
कि, क्षमता किस में है अधिक
जो सोख सके पूरा पानी
नदियों, जलाशयों, तालाबों का
और निष्ठुरता से कर सके निर्वसन
उनकी देह का
फिर छोड़ दे उन्हें प्यासा मरने के लिये
कुल्हाड़ी और आरी
काट रहे हैं परस्पर
एक दूसरे का कथन
हो रहा है विवाद
कि, धार किसकी अधिक है तेज
जो शीघ्र काट सके जड़ों से
हरियाली धरती की
और उसको बना सके ठूंठ
छीन सके उनकी प्राण वायु
कुदाल और खोदक
खोद रहे हैं मिल कर

एक दूसरे के विचार
खुली भिड़ंत हो रही है उनमें
इस बात पर
कि, शक्ति किस में है अधिक
जो तीव्रता से कर सके
सीना छलनी उर्वर धरती का
और उसे दे सके गहरा स्थायी घाव
चिमनी और सोखक
कुल्हाड़ी और आरी
कुदाल और खोदक
जुटे हैं सिद्ध करने के लिये
स्वयं को सर्व शक्तिशाली
कर रहे हैं निरंकुश होकर
निकंदन मंच पर वाक् युद्ध

इन निष्ठुरों की मारक मंशा भांप कर
संहारक कृत्य देख कर
दुःखी असहाय धरती
रो रही है धारोधार
आहत धरती पर आई विपत्ति
विषम स्थितियां जान कर
नष्ट हो रहे पर्यावरण पर दृष्टिपात कर
प्रकृति और समय
कर रहे हैं दण्ड निश्चित
निरंतर निर्भय हो रहे ऐसे जघन्य अपराध का
ताकि, दण्डित हो सकें
रोती धरती और सूखती हरियाली के अपराधी !
@ दिनेश ठक्कर बापा
( चित्र गूगल से साभार)